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________________ [प्रज्ञापनासूत्र] [७३ १७३३. अवसिडें जहा बेइंदियाणं। णवरं जस्स जत्तिया भागा तस्स ते सागरोवमसहस्सेणं सह भाणियव्वा। सव्वेसिं आणुपुव्वीए जाव अंतराइयस्स। [१७३३] शेष कर्म प्रकृतियों का बन्धकाल द्वीन्द्रिय जीवों के कथन के समान जानना। विशेष यह है कि जिसके जितने भाग हैं, वे सहस्र सागरोपम के साथ कहने चाहिए। इसी प्रकार अनुक्रम से यावत् अन्तरायकर्म तक सभी कर्मप्रकृतियों का यथायोग्य (बन्धकाल) कहना चाहिए। विवेचन - द्वीन्द्रियों के समान आलापक, किन्तु विशेष अन्तर भी - द्वीन्द्रिय जीवों के बन्धकाल से असंज्ञीपंचेन्द्रियों के प्रकरण में विशेषता यही है कि यहां जघन्य और उत्कृष्ट बन्धकाल को सहस्र सागरोपम से गुणित कहना चाहिए। जिस कर्म का जितना भाग है, उसका उतना ही भाग यहाँ सहस्र सागरोपम से गुणित कहना चाहिए। संज्ञीपंचेंद्रिय जीवों में कर्म-प्रकृतियों के स्थितिबन्ध का निरूपण १७३४. सण्णी णं भंते! जीवा पंचेंदिया णाणावरणिजस्स कम्मस्स कि बंधति ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसंसागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य बाससहस्साइं अबाहा। [१७३४ प्र.] भगवन् ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? [१७३४ उ.] गौतम! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम (काल का) बन्ध करते हैं। इनका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। (कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर इनका कर्मनिषेककाल है।) १७३५. [१] सण्णी णं भंते! पंचेंदिया णिहापंचगस्स कि बंधंति ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ; उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ, तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा। [१७३५-१ प्र.] भगवन् ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव निद्रापंचककर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? [१७३५-१ उ.] गौतम! वे जघन्य अन्तःकोडाकोडी सागरोपम का और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम का बन्ध करते हैं। इनका तीन हजार वर्ष का अबाधाकाल है, इत्यादि पूर्ववत्। [२] दंसणचउक्कस्स जहा णाणावरणिजस्स । [१७३५-२] दर्शनचतुष्क का बन्धकाल ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धकाल के समान है। १७३६. [१] सातावेदणिजस्स जहा ओहिया ठिती भणिया तहेव भाणियव्वा इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइयबंधयं च। १. प्रज्ञापनासूत्र भा. ५, पृ. ४२६
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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