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[तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] ___ गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे।
[१७३१-१ प्र.] भगवन् ! असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव नरकगतिनाम का कितने काल का बन्ध करते हैं?
[१७३१-१ उ.] गौतम! वे पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम (काल) का २७ भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण सहस्र सागरोपम का २७ भाग बांधते हैं।
[२] एवं तिरियगतीए वि। [१७३१-२] इसी प्रकार तिर्यञ्चगतिनाम के बंध के विषय में समझना चाहिए।
[३] मणुयगतिणामए वि एवं चेव। णवरं जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दिवड्ढे सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
[१७३१-३] मनुष्यगतिनामकर्म के बन्ध के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेष यह है कि इसका जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र-सागरोपम के १॥ भाग और उत्कृष्ट परिपूर्ण सहस्र सागरोपम के "भाग का करते हैं।
[४] एवं देवगतिणामए वि। णवरं जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं।
[१७३१-४] इसी प्रकार देवगतिनामकर्म के बन्ध के विषय में समझना। किन्तु विशेषता यह है कि इसका जघन्य बन्ध पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के १/७ भाग का और उत्कृष्ट पूरे उसी (सहस्र सागरोपम) के १/७ भाग का करते हैं।
[५] वेउव्वियसरीरणामए पुच्छा ।
गोयमा! जहणेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं दो पडिपुण्णे बंधंति।
[१७३१:५ प्र.] भगवन् ! (असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव) वैक्रियशरीरनाम का बन्ध कितने काल का करते हैं ?
[१७३१-५ उ.] गौतम! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के २७ भाग का और उत्कृष्ट पूर सहस्र सागरोपम के २/७ का करते हैं।
१७३२. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-आहारगसरीरणामए तित्थगरणामए य ण किचि बंधति ।
[१७३२] (असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव) सम्यक्त्वमोहनीय, सम्यग्मिथ्यात्वमोहनीय, आहारकशरीरनामकर्म और तीर्थंकरनामकर्म का बन्ध करते ही नही हैं।