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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद]
[१७३६-१] सातावेदनीयकर्म का बन्धकाल उसकी जो औधिक (सामान्य) स्थिति कही है, उतना ही कहना चाहिए। ऐर्यापथिकबन्ध और साम्परायिकबन्ध की अपेक्षा से (सातावेदनीय का बन्धकाल पृथक्-पृथक्) कहना चाहिए।
[२] असातावेयणिजस्स जहा णिहापंचगस्स। [१७३२-२] असातावेदनीय का बन्धकाल निद्रापंचक के समान (कहना चाहिए)। १७३७. [१] सम्मत्तवेदणिजस्स सम्मामिच्छत्तवेदणिजस्स य जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधंति।
[१७३७-१] वे सम्यक्त्ववेदनीय (मोहनीय) और सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) की जो औधिक स्थिति कही है, उतने ही काल का बांधते हैं। ___ [२] मिच्छत्तवेदणिजस्स जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ, सत्त य वाससहस्साई अबाहा०।
[१७३७-२] वे मिथ्यात्ववेदनीय का बन्ध जघन्य अन्त:कोडाकोडी सागरोपम का और उत्कृष्ट ७० कोडाकोडी सागरोपम का करते हैं। अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है, इत्यादि पूर्ववत्।
[३] कसायबारसगस्स जहण्णेणं एवं चेव, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीस य वाससहस्साई अबाहा०।
[१७३७-३] कषायद्वादशक (बारह कषायों) का बन्धकाल जघन्यत: इसी प्रकार (अन्त: कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण) है और उत्कृष्टतः चालीस कोडाकोडी सागरोपम का है। इनका अबाधाकाल चालीस हजार वर्ष का है, इत्यादि पूर्ववत्।
[४] कोह-माण-माया-लोभसंजलणाए य दो मासा मासो अद्धमासो अंतोमुहुत्तो एयं जहण्णेगं उक्कोसगं पुण जहा कसायबारसगस्स।
। [१७३७-४] संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ का जघन्य बन्ध क्रमशः दो मास, एक मास, अर्द्ध मास और अन्तर्मुहूर्त का होता है तथा उत्कृष्ट बन्ध कषाय द्वादशक के समान होता है।
१७३८. चउण्ह वि आउआणं जा ओहिया ठिती भणिया तं बंधति ।
[१७३८] चार प्रकार के आयुष्य (नरकायु, तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु और देवायु) कर्म की जो सामान्य (औधिक) स्थिति कही गई है, उसी स्थिति का वे (संज्ञीपंचेन्द्रिय) बन्ध करते हैं।
१७३९.[१]आहारगसरीरस्स तित्थगरणामए य जहण्णेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ; उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ बंधंति ।
[१७३९-१] वे आहारकशरीर और तीर्थंकरनामकर्म का बन्ध जघन्यतः अन्त:कोटाकोटि सागरोपम का करते