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________________ ६८] [तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] पडिपुण्णं बंधति । [१७१८ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? _ [१७१८ उ.] गौतम! वे जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्टतः वही परिपूर्ण बांधते हैं। १७१९. तिरिक्खजोणियाउअस्स जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडि चउहि वासेहि अहियं बंधति । एवं मणुयाउअस्स वि। ६१७१९] द्वीन्द्रिय जीव तिर्यञ्चायु को जघन्यत: अन्तर्मुहुर्त की और उत्कृष्टतः चार वर्ष अधिक पूर्वकोटिवर्ष की बांधते हैं । इसी प्रकार मनुष्यायु का कथन भी कर देना चाहिए। १७२०. सेसं जहा एगिदियाणं जाव अंतराइयस्स। [१७२०] शेष यावत् अन्तरायकर्म तक एकेन्द्रियों के कथन के समान जानना चाहिए। विवेचन - द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयादि आठ कर्मों का बन्ध कितने काल का करते हैं ? इस प्रश्न का समाधान यहाँ किया गया है। नीचे लिखे रेखाचित्र से आसनी से समझ में आ जाएगाकर्म प्रकृति का नाम जघन्य बन्धस्थिति उत्कृष्ट बन्धस्थिति ज्ञानावरणीय, निद्रापंचक पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम २५ सागरोपम के ३/७ भाग की २५ सागरोपम के ३/७ भाग की शेषकर्म एकेन्द्रिय के समान बन्ध-अबन्ध जानना मिथ्यात्वमोहनीय पल्योपम के असंख्यातवें भाग पूर्ण पच्चीस सागरोपम की कम २५ सागरोपम की तिर्यञ्चायु मनुष्यायुः अन्तर्मुहूर्त ४ वर्ष अधिक पूर्वकोटी की नाम गोत्र अन्तरायादि एकेन्द्रिय के समान एकेन्द्रियवत्' एकेन्द्रियों की अपेक्षा द्वीन्द्रिय जीवों के बंधकाल की विशेषता - एक विशेषता यह है कि द्वीन्द्रिय जीवों का बन्धकाल एकेद्रिय जीवों से पच्चीस गुणा अधिक होता है। जैसे - एकेन्द्रिय के ज्ञानावरणीयकर्म का जघन्य बन्धकाल पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम के ३/७ माग का है, जबकि द्वीन्द्रिय का जघन्य बन्धकाल पल्योपम के असंखयातवें भाग कम २५ सागरोपम के ३/७ भाग का है। इस प्रकार पच्चीस गुणा अधिक १. पण्णवणासुत्तं भाग १ (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ३७९
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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