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________________ [४४] तसणामए थावरणामए य एवं चेव। [१७०२-४४] त्रस-नामकर्म और स्थावर-नामकर्म की स्थिति भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। [४५] सुहुमणामए पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाइं अबाहा०। [१७०२-४५ प्र.] सूक्ष्म-नामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न है । [१७०२-४५ उ.] गौतम! इसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ९/३५ भाग की और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। [४६ ] बादरणामए जहा अपसत्थविहायगतिणामस्स (सु. १७०२ [ ४३])। [१७०२-४६] बादर-नामकर्म की स्थिति (सू. १७०२-४३ में उल्लिखित) अप्रशस्त विहायोगति की स्थिति के समान जानना चाहिए। [४७] एवं पजत्तगणामए वि। अपज्जत्तगणामए जहा सुहुमणामस्स (सु. १७०२ [४५])। [१७०२-४७] इसी प्रकार पर्याप्त-नामकर्म की स्थिति के विषय में जानना चाहिए। अपर्याप्त-नामकर्म की स्थिति (सू. १७०२-४५ में उक्त) सूक्ष्म-नामकर्म की स्थिति के समान है। [४८ ] पत्तेयसरीरणामए वि दो सत्तभागा। साहारणसरीरणामए जहा सुहुमस्स। [१७०२-४८] प्रत्येकशरीर-नामकर्म की स्थिति भी २७ भाग की है। साधारणशरीर-नामकर्म की स्थिति सूक्ष्मशरीर-नामकर्म की स्थिति के समान है । [४९] थिरणामए एगं सत्तभागं। अथिरणामए दो। [१७०२-४९] स्थिर-नामकर्म की स्थिति १/७ भाग की है तथा अस्थिर -नामकर्म की स्थिति २/७ भाग की [५० ] सुभणामए एगो। असुभणामए दो। [१७०२-५०] शुभ-नामकर्म की स्थिति १/७ भाग की और अशुभ-नामकर्म की स्थिति २/७ भाग की समझनी चाहिए। [५१] सुभगणामए एगो। दूभगणामए दो। [१७०२-५१] सुभग-नामकर्म की स्थिति १/७ भाग की और दुर्भगनामकर्म की स्थिति २/७ भाग की है। [५२] सूसरणामए एगो। दूसरणामए दो। [१७०२-५२] सुस्वर-नामकर्म की स्थिति १/७ भाग की और दुःस्वर-नामकर्म की स्थिति २७ भाग की होती है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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