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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ] 5 [ ५३ [ ५३ ] आएज्जणामए एगो । अणाएज्जणामए दो । [१७०२-५३] आदेय-नामकर्म की स्थिति १/७ भाग की और अनादेय- नामकर्म की २/७ भाग की होती है। [ ५४ ] जसोकित्तिणामए जहणणेणं अट्ठ मुहुत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अबाहा० । [१७०२-५४] यशःकीर्ति - नामकर्म की स्थिति जघन्य आठ मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का होता है। [ ५५ ] अजसाकित्तिणामए पुच्छा । गोयमा ! जहा अपसत्थविहायगतिणामस्स (सु. १७०२ [ ४३] ) । [ १७०२-५५ प्र.] भगवन्! अयशः कीर्ति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [ १७०२-५५ उ.] गौतम ! (सू. १७०२ - ४३ में उल्लिखित) अप्रशस्तविहायोगति नामकर्म की स्थिति के समान इसकी (जघन्य और उत्कृष्ट) स्थिति जाननी चाहिए। [ ५६ ] एवं णिम्माणणामए वि । [१७०२-५६] इसी प्रकार निर्माण-नामकर्म की स्थिति के विषय में भी ( जानना चाहिए।) [ ५७ ] तित्थंगरणामए णं० पुच्छा । गोयमा ! जहणणेणं अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ, उक्कोसेण वि अंतोसागरोवमकोडाकोडीओ । [ १७०२-५७ प्र.] भगवन् ! तीर्थंकरनामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [१७०२-५७ उ.] गौतम! इसकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोडाकोडी सागरोपम की कही गई है। [ ५८ ]. एवं जत्थ एगो सत्तभागो तत्थ उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडी दस या वाससयाई अबाहा । जत्थ दो सत्तभागा तत्थ उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ वीस य वाससयाइं अबाहा० । [१७०२-५८]जहाँ (जघन्य स्थिति सागरोपम के) १/७ भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल दस सौ ( एक हजार) वर्ष का ( समझना चाहिए) एवं जहाँ ( जघन्य स्थिति सागरोपम के) २/७ भाग की हो, वहाँ उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की और अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का (समझना चाहिए ।) १७०३. [ १ ] उच्चागोयस्स पुच्छा । गोयमा! जहणेणं अट्ठमुहुत्ता, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अबाहा० । [१७०३-१ प्र.] भगवन्! उच्चगोत्रकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [१७०३-१ उ.] गौतम! इसकी स्थिति जघन्य आठ मुहूर्त की और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरापम की है तथा इसका अबाधाकाल दस सौ वर्ष का है ।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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