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[प्रज्ञापनासूत्र]
[५१ [१७०२-३८ प्र.] मनुष्यानुपूर्वी-नामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न है।
[१७०२-३८ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ?" भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है।
[३९] देवाणुपुग्विणामए पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अबाहा० ।
[१७०२-३९ प्र.] भगवन् ! देवानुपूर्वी-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ?
[१७०२-३९ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के १/७ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है।
[४०] उस्सासणामए पुच्छा । गोयमा! जहा तिरियाणुपुव्वीए । [१७०२-४० प्र.] भगवन् ! उच्छ्वास-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [१७०२-४० उ.] गौतम! इसकी स्थिति तिर्यञ्चानुपूर्वी (सू. १७०२-३७ में उक्त) के समान है । [४१] आयवणामए वि एवं चेव, उज्जोवणामए वि। [१७०२-४१] इसी प्रकार आतप-नामकर्म की भी और तथैव उद्योत-नामकर्म की भी स्थिति जाननी चाहिए। [४२] पसत्थविहायगतिणामए पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं एगं सागरोवमस्स सत्तभागं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाई अबाहा।
[१७०२-४२ प्र.] प्रशस्तविहायोगति-नामकर्म की स्थिति के विषय मे प्रश्न है।
[१७०२-४२ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के १/७ भाग की और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। दस सौ (एक हजार) वर्ष का इसका अबाधाकाल है।
[४३ ] अपसत्थविहायगतिणामस्स पुच्छा।
गोयमा! जहणणेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाइं अबाहा०।
[१७०२-४३ प्र.] अप्रशस्तविहायोगति-नामकर्म की स्थिति विषयक प्रश्न है।
[१७०२-४३ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २/७ भाग की है तथा उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है।