SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [३१] रसाणं महुरादीणं जहा वण्णाणं भणियं (सु. १७०२[ २४-२८ ]) तहेव परिवाडीए भाणियव्वं । [१७०२-३१] मधुर आदि रसों की स्थिति का कथन (सू. १७०२-२४-२८ में उल्लिखित) वर्गों की स्थिति के समान उसी क्रम (परिपाटी) से कहना चाहिए । [३२] फासा जे अपसत्था तेसिं जहा सेवट्टस्स, जे पसत्था तेसिं जहा सुक्किलवण्णणामस्स (सु. १७०२ [२४])। [१७०२-३२] जो अप्रशस्त स्पर्श हैं, उनकी स्थिति सेवार्तसंहनन की स्थिति के समान तथा प्रशस्त स्पर्श हैं, उनकी स्थिति (सू. १७०२८२४में उल्लिखित) शुक्लवर्ण-नामकर्म की स्थिति के समान कहनी चाहिए। [३३] अगुरुलहुणामए जहा सेवट्टस्स। [१७०२-३३] अगुरुलघु-नामकर्म की स्थिति सेवार्तसंहनन की स्थिति के समान जानना चाहिये। [३४] एवं उवघायणामए वि। [१७०२-३४] इसी प्रकार उपघात-नामकर्म की स्थिति के विषय में भी कहना चाहिए। [३५] पराघायणामए वि एवं चेव। [१७०२-३५] पराघात-नामकर्म की स्थिति के विषय मे भी इसी प्रकार है। [३६] णिरयाणुपुग्विणामए पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा० । [१७०२-३६ प्र.] नरकानुपूर्वी-नामकर्म की स्थिति सम्बन्धी पृच्छा है । [१७०२-३६ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्र सागरोपम के २/७ भाग की है तथा उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। बीस सौ (दो हजार) वर्ष का इसका अबाधाकाल है। [३७] तिरियाणुपुव्वीए पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभगा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा०। [१७०२-३७ प्र.] भगवन्! तिर्यञ्चानुपूर्वी की स्थिति कितने काल की कही है ? [१७०२-३७ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २/७ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। [३८] मणुयाणुपुविणामए णं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेण ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाई अबाहा०।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy