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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
उक्कोसेणं अद्धतेरस सागरोवमकोडाकोडीओ; अद्धतेरस य वाससयाइं अबाहा० ।
[ १७०२ - २५ प्र.] पीत (हारिद्र) वर्ण - नामकर्म की स्थिति के 'सम्बन्ध में पृच्छा है।
[ १७०२ - २५ उ. ] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ५/२८ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति साढ़े बारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े बारह सौ वर्ष का है। [ २६ ] लोहियवण्णणामए णं० पुच्छा ।
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गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स छ अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाइं अबाहा० ।
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[१७०२-२६ प्र.] भगवन् ! रक्त (लोहित) वर्ण - नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ?
[ १७०२ - २६ उ. ] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के उसंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ६/२८ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है।
[ २७ ] णीलवण्णणामए पुच्छा ।
. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्त अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणया, उक्कोसेणं अद्धट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अद्धद्वारस य वाससयाइं अबाहा० ।
[१७०२-२७ प्र.] नीलवर्ण - नामकर्म की स्थिति-विषयक प्रश्न है।
[ १७०२-२७ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ७/२८ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति साढ़े सत्तरह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े सत्तरह सौ वर्ष का
है।
[ २८ ] कालवण्णणामए जहा सेवट्टसंघयणस्स (सु. १७०२ [२२])।
[१७०२-२८] कृष्णवर्ण - नामकर्म की स्थिति (सू. १७०२ - २२ में उल्लिखित) सेवार्त्तसंहनननामकर्म की स्थिति के समान है।
[२९] सुब्भिगंधणामए पुच्छा ।
गोयमा ! जहा सुक्किलवण्णणामस्स (सु. १७०२ [२४])।
[१७०२-२९ प्र.] सुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न है ।
[१७०२-२९ उ.] गौतम ! इसकी स्थिति (सू. १७०२ - २४ में उल्लिखित) शुक्लवर्ण - नामकर्म की स्थिति के समान है।
[३०] दुब्भिगंधणामए जहा सेवट्ठसंघयणस्स ।
[१७०२-३०] दुरभिगन्ध-नामकर्म की स्थिति सेवार्त्तसंहनन नामकर्म (की स्थिति) के समान ( जानना
चाहिए।)