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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [२०] अद्धणारायसंघयणणामस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स अट्ठ पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं सोलस च वाससयाई अबाहा०।
। [१७०२-२०] अर्द्धनाराचसंहनन-नामकर्म की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ८/३५ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति सोलह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल सोलह सौ वर्ष का है।
[२१] खीलियासंघयणे णं० पुच्छा। ___ गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा० ।
[१७०२-२१ प्र.] कीलिकासंहनन-नामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न है।
[१७०२-२१ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ९/३५ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है।
[२२] सेवट्टसंघयणणामस्स पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवभस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा०।
[१७०२-२२ प्र.] सेवार्तसंहनन-नामकर्म की स्थिति के विषय में पृच्छा है ।
[१७०२-२२ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २७ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है।
[२३ ] एवं जहा संघयणणामए छ भणिया एवं संठाणा वि छ भाणियव्वा।
[१७०२-२३] जिस प्रकार छह संहनननामकर्मों की स्थिति कही, उसी प्रकार छह संस्थाननामकर्मों की भी स्थिति कहनी चाहिए।
[२४] सुक्किलवण्णनामए पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीओ; दस य वाससयाइं अबाहा०।
[१७०२-२४ प्र.] शुक्लवर्ण-नामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न है। __ [१७०२-२४ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के १७ भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है।
[२५] हालिद्दवण्णणामए पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स पंच अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणगा,