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[तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [१३] अरइ-भय-सोग-दुगुंछाणं पुच्छा।
गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीसतिं वाससयाइ अबाहा० ।
[१७००-१३ प्र.] भगवन् ! अरति, भय, शोक और जुगुप्सा (मोहनीयकर्म) की स्थिति कितने काल की है ?
[१७००-१२ उ.] गौतम! इनकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २/७ भाग की है और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इनका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है।
१७०१. [१] णेरइयाउयस्स णं. पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडीतिभागमब्भहियाई।
[१७०१-१ प्र.] भगवन् ! नरकायु की स्थिति कितने काल की कही गई है?
[१७००-११ उ.] गौतम! नरकायु की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त-अधिक दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट करोड़ पूर्व के तृतीय भाग अधिक तेतीस सागरोपम की है।
[२] तिरिक्खजोणियाउअस्स पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं पुव्वकोडितिभागमब्भहियाई। [१७०१-२ प्र.] इसी प्रकार तिर्यञ्चायु की स्थिति सम्बन्धी प्रश्न है।
[१७०१-२ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि के त्रिभाग अधिक तीन पल्योपम की है।
[३] एवं मणूसाउअस्स वि। [१७०१-३] इसी प्रकार मनुष्यायु की स्थिति के विषय में जानना चाहिए। [४] देवाउअस्स जहा णेरइयाउअस्स ठिति त्ति। [१७०१-४] देवायु की स्थिति नरकायु की स्थिति के समान जाननी चाहिए। १७०२. [१] णिरयगतिणामए णं भंते ! कम्मस्स० पुच्छा।
गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स दो सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजतिभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा०।
[१७०२-१ प्र.] भगवन् ! नरकगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ?
[१७०२-१ उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम के २७ भाग की है और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है।
[२] तिरियगतिणामए जहा णपुंसगवेदस्स (सु. १७०० [११])।