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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ] [ ४५ [१७०२-२] तिर्यञ्चगति-नामकर्म की स्थिति (सु. १७०० - ११ में उल्लिखित) नपुंसकवेद की स्थिति के समान है। [३] मणुयगतिणामए पुच्छा । गोयमा! जहणेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाइं अबाहा० । [१७०२-३ प्र.] भगवन् ! मनुष्यगति-नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? ७ [ १७०२ - ३ उ.] गोयमा ! इसकी स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के १" भाग की है और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है 1 [ ४ ] देवगतिणामए णं० पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसहस्सस्स एक्कं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं जहा पुरिसवेयस्स (सु. १७०० [१०] ) [१७०२-४ प्र.] भगवन् ! देवगति नामकर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [१७०२-४ उ.] गोयमा ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सहस्रसागरोपम के १/७ भाग की है उत्कृष्ट स्थिति ( १७०० - १० में उल्लिखित) पुरुषवेद की स्थिति के तुल्य है । [५] एगिंदियजाइणामए पुच्छा । गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स दोण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; वीस य वाससयाई अबाहा० । [१७०२-५ प्र.] एकेन्द्रिय जाति - नामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न है 1 [१७०२-५ उ.] गोयमा ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के २/७ भाग की है और उत्कृष्ट बीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल बीस सौ (दो हजार) वर्ष का है। [कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम इसका निषेककाल है ] । [६] बेइंदियजातिणामए णं० पुच्छा। गोयमा ! जहणेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा० । [ १७०२-६ प्र.] द्वीन्द्रिय-जाति-नामकर्म की स्थिति के विषय में प्रश्न है । [१७०२-६ उ.] गोयमा ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के ९/३५ वें भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति अठारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल अठारह सौ वर्ष का है। [कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर शेष कर्म-निषेक-काल है ।]
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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