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[तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] सागरोपम की है और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका आबाधाकाल सात हजार वर्ष का है तथा कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर (शेष) कर्मनिषेककाल है।
[३] सम्मामिच्छत्तवेदणिजस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
[१७००-३] सम्यग्-मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहूर्त की है। ..
[४] कसायबारसगस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडकोडीओ; चत्तालीसं वाससयाई अबाहा, जाव णिसेगो।
[१७००-४] कषायद्वादशक (आदि के बारह कषायों) की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम सागरोपम के सात भागों में से चार भाग की (अर्थात् ४/७ भाग की) है और उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चालीस सौ (चार हजार) वर्ष का है तथा कर्मस्थिति में से अबाधाकाल कम करने पर जो शेष बचे, वह निषेककाल है।
[५] कोहसंजलणाए पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं दो मासा, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; चत्तालीसं वाससयाई जाव णिसेगो।
[१७००-५ प्र.] संज्वलन-क्रोध की स्थिति सम्बन्धी प्रश्न है।
[१७००-५ उ.] गौतम ! (संज्वलन-क्रोध की स्थिति) जघन्य दो मास की है और उत्कृष्ट चालीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल चालीस सौ वर्ष (चार हजार वर्ष) का है, यावत् निषेक अर्थात्-कर्मस्थिति (काल)में अबाधाकाल कम करने पर (शेष) कर्मनिषेककाल समझना।
[६] माणसंजलणाए पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं मासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। [१७००-६ प्र.] मान-संज्वलन की स्थिति के विषय में प्रश्न है। [१७००-६ उ.] गौतम! उसकी स्थिति जघन्य एक मास की है और उत्कृष्ट क्रोध की स्थिति के समान है। [७] मायासंजलणाए पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अद्धमासं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स। [१७००-७ प्र.] माया-संज्वलन की स्थिति के सम्बन्ध में प्रश्न है। [१७००-७ उ.] गौतम! उसकी स्थिति जघन्य अर्धमास की है और उत्कृष्ट स्थिति क्रोध के बराबर है। [८] लोभसंजलणाए पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं जहा कोहस्स।