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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र ] [१६९८ -१ प्र.] भगवन्! निद्रापंचक (दर्शनावरणीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [१६९८ - १ उ.] गौतम! ( उसकी स्थिति) जघन्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम, सागरोपम के ३/७ भाग की है और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है तथा (सम्पूर्ण) कर्मस्थिति (काल) में से अबाधाकाल को कम करने पर (शेष) कर्मनिषेककाल है। [ २ ] दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य बाससहस्साइं अबाहा 0 । [१६९८-२ प्र.] भगवन्! दर्शनचतुष्क (दर्शनावरणीय) कर्म की स्थिति कितने काल की कही है ? [१६९८-२ उ.] गौतम! ( उसकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की । उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। (निषेककाल पूर्ववत् है ।) १६९९. [ १ ] सातावेयणिज्जस्स इरियावहियबंधगं पडुच्च अजहण्णमणुक्को सेणं दो समया, संपराइयबंधगं पडुच्च जहण्णेणं बारस मुहुत्ता, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीओ; पण्णरस य वाससयाई अबाहा० । [४१ [१६९९-१] सातावेदनीयकर्म की स्थिति ईर्यापथिक बन्धक की अपेक्षा जघन्य - उत्कृष्ट-भेदरहित दो समय की है तथा साम्परायिक बन्धक की अपेक्षा जघन्य बारह मुहूर्त की और उत्कृष्ट पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। (निषेककाल पूर्ववत् है ।) [ २ ] असायावेयणिज्जस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिण्णि य वाससहस्साइं अबाहा० । [१६९९-२] असातावेदनीयकर्म की स्थिति जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग की (अर्थात् ३/७ भाग की ) है और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है (निषेककाल पूर्ववत् है ) । १७००. [ १ ] सम्मत्तवेयणिज्जस्स पुच्छा । गोमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठि सागरोव माई साइरेगाई | [१७०० -१ प्र.] भगवन् ! सम्यक्त्व - वेदनीय (मोहनीय) की स्थिति कितने काल की है ? [१७००-१ उ.] गौतम! उसकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की है। [ २ ] मिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहणणेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं सत्तरि कोडाकोडीओ; सत्त य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया० । [१७००-२] मिथ्यात्व - वेदनीय (मोहनीय) की जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग कम एक
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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