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________________ [ छत्तीसवाँ समुद्घातपद ] [ २८७ [ ३ ] वयजोगं जुंज़माणे किं सच्चवइजोगं जुंजइ मोसवइजोगं जुंजइ सच्चामोसवइजोगं जुंजइ असच्चामोसवइजोगं जुंजइ ? गोयमा! सच्चवइजोगं जुंजइ, णो मोसवइजोगं जुंजइ णो सच्चामोसवइजोगं जुंजइ असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ । [२१७४-३] भगवन्! वचनयोग का उपयोग करता हुआ केवली क्या सत्यवचनयोग का उपयोग करता है, मृषावचनयोग का उपयोग करता है, सत्यमृषावचनयोग का उपयोग करता है, अथवा असत्यामृषावचनयोग का उपयोग करता है ? [२१७४-३] गौतम! वह सत्यवचनयोग का उपयोग करता है और असत्यामृषावचनयोग का भी उपयोग करता है, किन्तु न तो मृषावचनयोग का उपयोग करता है और न ही सत्यमृषावचनयोग का उपयोग करता है। [४] कायजोगं जुंजमाणे आगच्छेज वा गच्छेज वा चिट्ठेज वा णिसीएज्ज वा तुयट्टेज वा उल्लंघेज्ज वा पलंघेज्ज वा पाडिहारियं पीढ - फलग - सेज्जा- संथारगं पच्चप्पिणेज्जा । [२१७४-४] काययोग का उपयोग करता हुआ (केवलिसमुद्घातकर्त्ता केवली) आता है, जाता है, ठहरता है, बैठता है, करवट बदलता है (या लेटता है), लांघता है, अथवा विशेष रूप से लांघता (छलांग मारता) है, या वापस लौटाये जाने वाले पीठ (चौकी), पट्टा, शैया ( वसति - स्थान), तथा संस्तारक (आदि सामान) वापस लौटता है। २१७५. से भंते! तहा सजोगी सिज्झति जाव अंतं करेति ? गोयमा! णो इणट्ठे समट्ठे । से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, तओ अणंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्सं जहण्णजोगिस्स ट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं दोच्चं वइजोगं णिरुं भति, तओ अणंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तयस्स जहण्णजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं णिरुंभति । से णं एतेणं उवाएणं पढमं मणजोगं णिरुंभित्ता व जोगं णिरुंभति, वइजोगं णिरुंभित्ता कायजोगं णिरुंभित । से णं एतेणं उवाएणं पढमं मणजोगं णिरुं भति जोगणिरोहं करेति, जोगणिरोहं करेत्ता अजोगयं पाउणति, अजोगयं पाउणित्ता ईसीहस्सपंचक्खरुच्चारणद्वाए असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसिं पडिवज्जइ, पुव्वरइतगुणसेढीयं च णं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं असंखेज्जे OOOOO 00000 OOOO 00000 OOOO कम्मं कम्मखंधे खवयति, खवइत्ता वेदणिज्जाऽऽउय - णाम-गोत्ते इच्चेते चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेति, जुगवं खवेत्ता ओरालियतेया- कम्मगाईं सव्वाहि विप्पजहणाहि विप्पजहति, विप्पजहित्ता उजुसेढीपडिवण्णे अफुसमाणगतीए एगसमएणं अविग्गणं उड्ढं गंता सागारोवउत्ते सिज्झति बुज्झति० । 00000 [२१७५ प्र.] भगवन्! वह तथारूप सयोगी (केवलिसमुद्घातप्रवृत्त केवली) सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? १. अधिक पाठ - ' तत्थ सिद्धो भवति' अर्थात् वह वहाँ (सिद्धशिला में पहुँच कर ) सिद्ध (मुक्त) हो जाता है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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