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________________ २८६] [प्रज्ञापनासूत्र] आहारगमीसासरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मगसरीरकायजोगं पि जुंजइ, पढमट्ठमेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, बितिय-छट्ठ-सत्तमेसु ओरालियमीसगसरीरकायजोगं जुंजइ, ततिय-चउत्थ-पंचमेसु समएसु कम्मगसरीरकायजोगं जुंजइ। [२१७३-२ प्र.] भगवन्! काययोग का प्रयोग करता हुआ केवली क्या औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, वैक्रियशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, वैक्रियमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, आहारकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, आहारकमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है अथवा कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है? [२१७३-२ उ.] गौतम! (काययोग का प्रयोग करता हुआ केवली) औदारिकशरीरकाययोग का भी प्रयोग करता है, औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का भी प्रयोग करता है, किन्तु न तो वैक्रियशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, न वैक्रियमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है. न आहारकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है और न ही आहारकमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, वह कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है। प्रथम और अष्टम समय में औदारिकशरीरकाययोग का प्रयोग करता है, दूसरे, छठे, और सातवें समय में औदारिकमिश्रशरीरकाययोग का प्रयोग करता है तथा तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मणशरीरकाययोग का प्रयोग करता है। २१७४. [१] से णं भंते! तहासमुग्घायगते सिन्झइ बुझइ मुच्चई परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? गोयमा! णो इणढे समढे, से णं तओ पडिनियत्तति, ततो पडिनियत्तित्ता ततो पच्छा मणजोगं पि जुंजइ वइजोगं पि जुंजइ कायजोगं पि जुंजइ । ___ [२१७४-१ प्र.] भगवन् ! तथारूप समुद्घात को प्राप्त केवली क्या सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वाण को प्राप्त हो जाते हैं, क्या वह सभी दु:खों का अन्त कर देते हैं ? [२१७४-१ उ.] गौतम! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। पहले वे उससे (केवलिसमुद्घात से) प्रतिनिवृत्त होते हैं। तत्पश्चात् वे मनोयोग का उपयोग करते हैं, वचनयोग और काययोग का भी उपयोग करते हैं। [२] मणजोगणं जुंजमाणे किं सच्चमणजोगं जुंजइ मोसमणजोगं गुंजइ सच्चामोसमणजोगं जुंजइ असच्चामोसमणजोगं जुंजइ? गोयमा ! सच्चमणजोगं जुंजइ,णो मोसमणजोगं जुंजइ णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ, असच्चामोसमणजोगं पि जुंजइ। [२१७४-२ प्र.] भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करता हुआ केवलिसमुद्घात करने वाला केवली क्या सत्यमनोयोग का उपयोग करता है, मृषामनोयोग का उपयोग करता है, सत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है, अथवा असत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है? । [२१७४-२ उ.] गौतम! वह सत्यमनोयोग का उपयोग करता है और असत्यामृषामनोयोग का भी उपयोग करता है, किन्तु न तो मृषामनोयोग का उपयोग करता है और न सत्यामृषामनोयोग का उपयोग करता है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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