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________________ २६६] विशेष यह है कि मानसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं । विवेचन- - निष्कर्ष - सर्वप्रथम कषायसमुद्घात के चार प्रकार तथा नैरयिक से लेकर वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों में चारों प्रकार के कषायों के अस्तित्व की प्ररूपणा की गई हैं। तदनन्तर चौबीस दण्डकों में एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा क्रोधादि चारों समुद्घातों के अतीत - अनागत की प्ररूपणा की गई हैं। नारक से लेकर वैमानिक तक प्रत्येक में अनन्त अतीत क्रोधादि समुद्घात हैं तथा प्रत्येक में भावी क्रोधादि समुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते हैं। जो नारक आदि नारकादि भव के अन्तिम समय में वर्तमान हैं और जो स्वभाव से ही मन्दकषायी हैं, वह कषायसमुद्धात किये बिना ही मुत्यु को प्राप्त होकर नरक से निकल कर मनुष्यभव में उत्पन्न होने वाला है और कषायसमुद्घात किये बिना ही सिद्ध हो जाएगा, उसके भावी कषायसमुद्घात नहीं होता। उससे भिन्न प्रकार का जो नारक है, उसके भावी कषायसमुद्घात जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात और अनन्त होते हैं। संख्यातकाल तक संसार में रहने वाले के संख्यात, असंख्यातकाल तक संसार में रहने वाले के असंख्यात और अनन्तकाल तक संसार में रहने वाले के अनन्त भावी कषायसमुद्घात होते हैं। बहुत्व की अपेक्षा से नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के अतीत और अनागत क्रोधादि समुद्घात अनन्त हैं । अनागत अनन्त इसलिए हैं कि पृच्छा के समय बहुत से नारकादि ऐसे होते हैं, जो अनन्तकाल तक संसार में रहेंगे। इस प्रकार एकवचन और बहुवचन से सम्बन्धित चौबीस दण्डकों के प्रत्येक के चार-चार आलापक होते हैं। यों कुल मिलाकर २४x ४ = ९६ आलापक होते हैं। [ प्रज्ञापनासूत्र ] इसके पश्चात् चौबीस दण्डकों संबंधी नैरयिक आदि स्व- परपर्यायों में एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा से अतीत अनागत क्रोधादि कषायसमुद्घात की प्ररूपणा की गई है। विशेष- अत्यन्त तीव्र पीड़ा में निरन्तर उद्विग्न रहने वाले नारकों में प्राय: लोभसमुद्घात होता नहीं है। होते हैं तो भी वे अल्प होते हैं । इसके पश्चात् क्रोध, मान, माया और लोभ समुद्घात से समवहत और असमवहत समुच्चय जीव एवं चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है। अल्पबहुत्व की चर्चा और स्पष्टीकरण – (१) समुच्चयजीव - सबसे कम अकषायसमुद्घात के समवहत हैं। कषायसमुद्घात का अर्थ है- कषायसमुद्घात से भिन्न या रहित छह समुद्घातों में से किसी भी एक समुद्घात से समवहत। अकषायसमुद्घात से समवहत जीव कदाचित् कोई-कोई ही पाए जाते हैं। वे यदि उत्कृष्ट संख्या में हों तो भी कषायसमुद्घात से समवहत जीवों के अनन्तवें भाग ही होते हैं। उनकी अपेक्षा मानसमुद्घातों से समवहत जीव अनन्तगुणा अधिक हैं। क्योंकि अनन्त वनस्पतिकायिक जीव पूर्वभव के संस्कारों के कारण मानसमुद्घात में वर्तमान रहते हैं। उनकी अपेक्षा क्रोधसमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि मानी जीवों की अपेक्षा क्रोधी जीव विशेषाधिक होते हैं। उनसे मायासमुद्घात - समवहत जीव विशेषाधिक होते हैं। उनसे भी लोभसमुद्घात - समवहत जीव विशेषाधिक होते हैं, क्योंकि मायी जीवों की अपेक्षा लोभी जीव बहुत अधिक १. (क) प्रज्ञापना, (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. १०५४ तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. ७, पृ. ४५२
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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