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________________ [२६५ [ छत्तीसवाँ समुद्घातपद ] माणसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुण, कोहसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा । [२१४३ प्र.] भगवन्! इन क्रोधसमुद्घात से, मानसमुद्घात से, मायासमुद्घात से और लोभसमुद्घात से समवहत और असमवहत नारकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२१४३ उ.] गौतम ! सबसे कम लोभसमुद्घात से समवहत नारक हैं, उनसे संख्यातगुणा मायासमुद्घात समवहत नारक हैं, उनसे संख्यातगुणा मानसमुद्घात से समवहत नारक हैं, उनसे संख्यातगुणा क्रोधसमुद्घात से समवहत नारक हैं और इन सबसे संख्यातगुणा असमवहत नारक हैं । २१४४. [ १ ] असुरकुमाराणं पुच्छा । गोयमा! सव्वत्थोवा असुरकुमारा कोहसमुग्धाएणं समोहया, माणसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, · मायासमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, लोभसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया संखेज्जगुणा । [२१४४-१ प्र.] भगवन् ! क्रोधादिसमुद्घात से समवहत और असमवहत असुरकुमारों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२१४४ - १ उ.] गौतम! सबसे थोड़े क्रोधसमुद्घात से समवहत असुरकुमार हैं, उनसे मानसमुद्घात से समवहत असुरकुमार संख्यातगुणा हैं, उनसे मायासमुद्घात से समवहत असुरकुमार संख्यातगुण हैं और उनसे लोभसमुद्घात से समवहत असुरकुमार संख्यातगुण हैं तथा इन सबसे असमवहत असुरकुमार संख्यातगुणा हैं। [२] एवं सव्वदेवा जाव वेमाणिया । [२१४४-२] इसी प्रकार वैमानिकों तक सर्वदेवों के क्रोधादिसमुद्घात के अल्पबहुत्व का कथन करना चाहिए । २१४५. [ १ ] पुढविक्काइयाणं पुच्छा । गोमा! सव्वथवा पुढविक्काइया माणसमुग्धाएणं समोहया, कोहसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, मायासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, लोभसमुग्धाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया संखेज्जगुणा । [२१४५-१ प्र.] भगवन् ! क्रोधादिसमुत्वात से समवहत और असमवहत पृथ्वीकायिकों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२१४५ -१ उ.] गौतम! सबसे कम मानसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक हैं, उनसे क्रोधसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे मायासमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं और उनसे लोभसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं तथा इन सबसे असमवहत पृथ्वीकायिक संख्यातगुणा हैं। [२] एवं जाव पंचेदियतिरिक्खजोणिया । [२१४५-२] इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक के अल्पबहुत्व के विषय में समझना चाहिए । २१४६. मणुस्सा जहा जीवा (सु. २१४२ ) । णवरं माणसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा । [२१४६] मनुष्य की (अल्पबहुत्व-सम्बन्धी वक्तव्यता सू. २१४२ में उक्त) समुच्चय जीवों के समान है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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