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________________ [ छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२६७ होते हैं। उनसे भी असमवहत जीव संख्यातगुणा हैं। क्योंकि चारों गतियों में समुद्घात युक्त जीवों की अपेक्षा समुद्घातरहित जीव संख्यातगुणा अधिक पाये जाते हैं । सिद्ध जीव एकेन्द्रियों के अनन्तवें भाग हैं, किन्तु यहाँ उनकी विवक्षा नहीं की गई है। (२) नारकों में कषायसमुद्घातों का अल्पबहुत्व - नारकों में लोभसमुद्घात सबसे कम है, क्योंकि नारकों को प्रिय वस्तुओं का संयोग नहीं मिलता। अतः उनमें लोभसमुद्घात, होता भी है तो भी अन्य क्रोधादि समुद्घातों से बहुत ही कम है। उसकी अपेक्षा मायासमुद्घात, मानसमुद्घात, क्रोधसमुद्घात क्रमशः उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अधिक हैं। असमवहत नारक इन सबसे संख्यातगुणा हैं। (३) असुरकुमारादि में कषायसमुद्घातों का अल्पबहुत्व – देवों में स्वभावतः लोभ की प्रचुरता होती है। उससे मानकषाय, क्रोधकषाय एवं मायाकषाय की उत्तरोत्तर अल्पता होती है। इसलिए असुरकुमारादि भवनवासी देवों में सबसे कम क्रोध समुद्घाती, उससे उत्तरोत्तर मान, माया और लोभ से समवहत अधिक बताए हैं और सबसे अधिक-संख्यातगुणे अधिक असमवहत असुरकुमार हैं। पृथ्वीकायिकों में अल्पबहुत्व-मान, क्रोध, माया और लोभ समुद्घात उत्तरोत्तर अधिक हैं। असमवहत पृथ्वीकायिक संख्यातगुण अधिक हैं। पृथ्वीकायिकों के समान अन्य एकेन्द्रिय के तथा विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की भी वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए। मनुष्यों में कषायसमुद्घात समवहत संबंधी अल्पबहुत्व - समुच्चयजीवों के समान समझना चाहिए। परन्तु एक बात विशेष है, कि अकषायसमुद्घात से समवहत मनुष्यों की अपेक्षा मानसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं । क्योंकि मनुष्यों में मान की प्रचुरता पाई जाती हैं।' चौवीस दण्डकों में छाद्मस्थिकसमुद्घात प्ररूपणा २१४७. कति णं भंते! छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! छाउमत्थिया छ समुग्घाया पण्णत्ता। तं जहा-वेदणासमुग्घाए १ कसायसमुग्घाए २ मारणंतियसमुग्घाए ३ वेउव्वियसमुग्घाए ४ तेयगसमुग्घाए ५ आहारगसमुग्घाए ६। [२१४७ प्र.] भगवन् ! छानस्थिकसमुद्घात कितने कहे गए हैं ? [२१४७ उ.] गौतम! छाद्मस्थिकसमुद्घात छह कहे गए हैं, वे इस प्रकार - (१) वेदनासमुद्घात, (२) कषायसमुद्घात, (३) मारणान्तिकसमुद्घात, (४) वैक्रियसमुद्घात, (५) तैजससमुद्घात और (६) आहरकसमुद्घात । २१४८.णेरइयाणं भंते! कति छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता। तं जहा-वेदणासमुग्याए १ कसायसमुग्घाए २ मारणंतियसमुग्याए ३ वेउव्वियसमुग्याए । [२१४८ प्र.] भगवन्! नारकों में कितने छाद्मस्थिकसमुद्घात कहे गए है ?
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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