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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२५७ [२] एवं जाव थणियकुमारा। [२१२७-२] इसी प्रकार (का कथन नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। २१२८. [१] एतेसि णं भंते! पुढविक्काइयाणं वेदणासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कयरे० ? गोयमा! सव्वत्थोवा पुढविक्काइया मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेजगुणा, वेदणासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेजगुणा। [२१२८-१ प्र.] भगवन् ! इन वेदनासमुद्घात से, कषायसमुद्घात से एवं मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत तथा असमवहत पृथ्वीकायिकों मे कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२१२८-१ उ.] गौतम! सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक हैं, उनसे कषायसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक संख्यातगुणा हैं, उनसे वेदनासमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं और इन सबसे असमवहत पृथ्वीकायिक असंख्यातगुणा हैं। [२] एवं जाव वणस्सइकाइया। णवरं सव्वत्थोवा वाउक्काइया वेउव्विसमुग्घाएणं समोहया, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा, वेदणासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेज्जगुणा। [२१२८-२] इसी प्रकार (अप्कायिक से लेकर) वनस्पतिकायिक तक पृथ्वीकायिकवत् समझना चाहिए। विशेष यह है कि वायुकायिक जीवों में सबसे कम वैक्रियसमुद्घात से समवहत वायुकायिक हैं, उनसे मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत वायुकायिक असंख्यातगुणा हैं, उनसे कषायसमुद्घात से समवहत वायुकायिक असंख्यातगुणा हैं और उनसे वेदनासमुद्घात से समवहत वायुकायिक विशेषाधिक हैं तथा (इन सबसे) असंख्यातगुणा अधिक हैं असमवहत वायुकायिक जीव। २१२९. [१] बेइंदियाणं भंते! वेयणासमुग्घाएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरेहिंतो अप्पा वा ४? गोयमा! सव्वत्थोवा बेइंदिया मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया, वेदणासमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा, कसायसमुग्घाएणं समोहया संखेजगुणा, असमोहया संखेजगुणा। [२१२९-१ प्र.] भगवन् ! इन वेदनासमुद्घात से, कषायसमुद्घात से तथा मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत एवं असमवहत द्वीन्द्रिय जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२१२९-१ उ.] गौतम ! सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय जीव हैं। उनसे वेदनासमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय असंख्यातगुणा हैं, उनसे कषायसमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय संख्यातगुणा और इन सबसे असमवहत द्वीन्द्रिय संख्यातगुणा अधिक हैं। [२] एवं जाव चउरिं दिया।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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