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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२५५ नरक में गमन नहीं होता। अतः मनुष्यावस्था में भी अतीत केवलिसमुद्घात सम्भव नहीं है। पृच्छा के समय में जो नारक विद्यमान हों, उनमें से असंख्यात ऐसे हैं, जो मोक्षगमन के योग्य हैं। इस दृष्टि से भावी केवलिसमुद्घात असंख्यात कहे गए हैं। इसी प्रकार असुरकुमार आदि भवनवासियों के पृथ्वीकायिक आदि चार एकेन्द्रियों (वनस्पतियों के सिवाय), तीन विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों के भी मनुष्येतरपर्याय में अतीत अथवा अनागत केवलिसमुद्घात पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार नहीं हो सकते । वनस्पतिकायिकों के मनुष्यावस्था में अतीत केवलिसमुद्घात तो नहीं होते, क्योंकि केवलिसमुद्घात के पश्चात् उसी भव में मुक्ति प्राप्त हो जाती है, फिर वनस्पतिकायिकों में जन्म लेना सम्भव नहीं है, किन्तु भावी केवलिसमुद्घात अनन्त हैं। इसका कारण यह है कि पृच्छा के समय जो वनस्पतिकायिक जीव हैं, उनमें अनन्त जीव ऐसे भी हैं, जो वनस्पतकाय से निकल कर अनन्तरभव में या परम्परा से केवलिसमुद्घात करके सिद्धि प्राप्त करेंगे। ___ मनुष्यों के मनुष्यावस्था में अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता। जब कई मनुष्य केवलिसमुद्घात कर चुके हों और मुक्त हो चुके हों और अन्य किसी केवली ने केवलिसमुद्घात न किया हो, तब केवलिसमुद्घात का अभाव समझना चाहिए। जब मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में केवलिसमुद्घात होते हैं तब जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शत-पृथक्त्व (दो सौ से नौ सौ तक) होते हैं। ___ मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में रहते हुए भावी केवलिसमुद्घात कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। पृच्छा के समय में कदाचित् असंख्यात भी हो सकते हैं। इस प्रकार के चौवीस-चौवीस दण्डक हैं, जिनमें अतीत और अनागत केवलिसमुद्घातों का प्रतिपादन किया गया है। ये सब मिलकर १०५६ आलापक होते हैं । ये आलापक नैरयिकपर्याय के लेकर वैमानिकपर्याय तक स्वपरस्थानों में कहने चाहिए। विविध-समुद्घात-समवहत-असमवहत जीवादि के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा २१२५. एतेसि णं भंते! जीवाणं वेयणासमुग्याएणं कसायसमुग्घाएणं मारणंतियसमुग्घाएणं वेउब्वियसमुग्घाएणं आहारगसमुग्घाएणं केवलिसमुग्घाएणं समोहयाणं असमोहयाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? . गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसमुग्याएणं समोहया, केवलिसमुग्घाएणं समोहया, संखेजगुणा, तेयगसमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहया असंखेजगुणा, वेदणासमुग्घाएणं समोहया विसेसाहिया, असमोहया असंखेजगुणा। ___ [२१२५ प्र.] भगवन् ! इन वेदनासमुद्घात से, कषायसमुद्घात से, मारणान्तिकसमुद्घात से, वैक्रियसमुद्घात से, तैजससमुद्घात से, आहारकसमुद्घात से और केवलिसमुद्घात से समवहत एवं असमवहत (अर्थात् जो किसी भी समुद्घात से युक्त नहीं हैं - सर्वसमुद्घात से रहित) जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत तुल्य अथवा १. (क) वही, भा. ५, पृ. ९९९ से १००१ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि.रा.कोष. भा. ७, पृ. ४४४
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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