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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
ज्योतिष्क-वैमानिकपर्याय में भी नारकों के अतीत और भावी आहारकसमुद्घात भी पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार नहीं
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हैं।
विशेष - (नारकों के) मनुष्यपर्याय में अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात असंख्यात हैं, क्योंकि पृच्छा के समय जो नारक विद्यमान हैं, उनमें से असंख्यात नारक ऐसे हैं, जिन्होंने पूर्वकाल में कभी-न-कभी मनुष्यपर्याय प्राप्त की थी, जो चौदह पूर्वों के ज्ञाता थे और जिन्होंने एक बार या दो-तीन बार आहारकसमुद्घात भी किया था। इस कारण नारकों के मनुष्यावस्था में असंख्यात अतीत आहारकसमुद्घात कहे गए हैं। इसी प्रकार पृच्छा के समय विद्यमान नारकों में से असंख्यात ऐसे हैं, जो नारक से निकल कर अनन्तरभव में या परम्परा से मनुष्यभव प्राप्त करके चौदह पूर्वों के धारक होंगे और आहारकलब्धि प्राप्त करके आहारकसमुद्घात करेंगे। इसी कारण नारकों के मनुष्यपर्याय में भावी समुद्घात असंख्यात कहे गए हैं।
नारकों के समान असुरकुामरों से लेकर वैमानिकों तक चौबीसों दण्डकां के क्रम से स्व-पर-स्थानों में आहारकसमुद्घातों का (मनुष्यपर्याय को छोड़कर) निषेध करना चाहिए। विशेषता यह है कि वनस्पतिकायिकों के मनुष्यपर्याय में अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात अनन्त कहना चाहिए, क्योंकि अनन्त जीव ऐसे हैं, जिन्होंने मनुष्यभव में चौदह पूर्वों का अध्ययन किया था और यथासम्भव एक, दो या तीन बार आहारकसमुद्घात भी किया था, किन्तु अब वे वनस्पतिकायिक अवस्था में हैं। अनन्त जीव ऐसे भी हैं, जो वनस्पतिकाय से निकल कर मनुष्यभव धारण कर भविष्य में आहारकसमुद्घात करेंगे। मनुष्यों के मनुष्यावस्था में पृच्छा समय से पूर्व अतीत समुद्घात कदाचित् संख्यात हैं और कदाचित् असंख्यात हैं। इसी प्रकार मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में रहते हु भावी आहारकसमुद्घात कदाचित् असंख्यात होते हैं, क्योंकि वे पृच्छा के समय उत्कृष्टरूप से भी सबसे कम श्रेणी के असंख्यातवें भाग में रहे हुए आकाशप्रदेशों की राशि के बराबर हैं। इस कारण प्रश्न के समय कदाचित् असंख्यात समझना चाहिए तथा प्रत्येक ने यथासम्भव एक, दो या तीन बार आहारकसमुद्घात किया है, या करेंगे, इस दृष्टि से कदाचित् संख्यात भी हैं। मनुष्यों के अतिरिक्त शेष सब असुरकुमारों आदि का कथन नारकों के समान समझना चाहिए ।
इस प्रकार यहाँ चौबीसों दण्डकों में से प्रत्येक को चौबीस ही दण्डकों पर घटित करना चाहिए। सब मिलकर १०५६ आलापक होते हैं ।
केवलिसमुद्घात - नारकों के नारकपर्याय में अतीत और भावी केवलिसमुद्घात नहीं होता, क्योंकि केवलिसमुद्घात केवल मनुष्यावस्था में ही हो सकता हैं। मनुष्य के अतिरिक्त अन्य अवस्था में वह सम्भव ही नहीं है। जो जीव केवलिसमुद्घात कर चुका हो, वह संसार - परिभ्रमण नहीं करता, क्योकि केवलिसमुद्घात के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त्त में ही नियम से मोक्ष प्राप्त हो जाता है। अतएव नारकों के मनुष्य से भिन्न अवस्था में अतीत और अनागत केवलिसमुद्घात ही नहीं है। इसी प्रकार असुरकुमारादि से लेकर (मनुष्यपर्याय के सिवाय) वैमानिक अवस्था में भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं हो सकता । अभिप्राय यह है कि जो मनुष्य केवलिसमुद्घात कर चुके हों, उनका
१. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि.रा.कोष भा. ७, पृ. ४४४ (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ९९५