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________________ २४२] [प्रज्ञापनासूत्र] [२११३] पृथ्वीकायिक के पृथ्वीकायिक अवस्था में यावत् मनुष्य-अवस्था में (कषायसमुद्घात) अतीत अनन्त हैं। इसके भावी (कषायसमुद्घात) किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके एक से लगा कर अनन्त होते हैं। वाणव्यन्तर-अवस्था में (सु. २११२ में उक्त) नारक-अवस्था के समान जानना चाहिए। ज्योतिष्क और वैमानिक-अवस्था में (कषायसमुद्घात) अनन्त अतीत हुए हैं। (उसके) भावी (कषायसमुद्घात) किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं। २११४. एवं जाव मणूसे वि णेयव्वं। [२११४ ] इसी प्रकार (पृथ्वीकायिक के समान) मनुष्यत्व तक में भी जान लेना चाहिए। २११५.[१] वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारे (सू. २१०८-१०)। णवरं सट्टाणे एगुत्तरियाए भाणियव्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते। [२११५-१]वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों की वक्तव्यता (सू. २१०८-१० में उक्त) असुरकुमारों की वक्तव्यता के समान समझना चाहिए। विशेष बात यह है कि स्वस्थान में (सर्वत्र) एक से लेकर समझना तथा . वैमानिक के वैमानिकत्व पर्यन्त कहना चाहिए। [२] एवं एते चउवीसं चउवीसा दंडगा। [२११५-२] इस प्रकार ये सब पूर्वोक्त चौबीसों दण्डक चौबीसों दण्डकों में कहने चाहिए। २११६. [१] मारणंतियसमुग्धाओ सट्ठाणे वि परट्ठाणे वि एगुत्तरियाए नेयव्वो जाव वैमाणियस्स वेमाणियत्ते। [२११६-१] मारणान्तिकसमुद्घात स्वस्थान में भी और परस्थान में भी पूर्वोक्त एकोतरिका से (अर्थात्-एकसे लगाकर) समझ लेना चाहिए । यावत् वैमानिक का वैमानिकपर्याय में (यहाँ तक अन्तिम दण्डक कहना चाहिए। [२] एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा।। इसी प्रकार ये चौबीस दण्डक चौबीसों दण्डकों में कह देना चाहिए। २११७. [१] वेउव्वियसमुग्घाओ जहा कसायसमुग्घाओ (सु. २१०५-१५) तहा णिरवसेसो भाणियव्वो। णवरं जस्स णत्थि तस्स ण वुच्चति। [२११७-१] वैक्रियसमुद्घात की समग्र वक्तव्यता कषायसमुद्घात (सू. २१०५ से २११५ तक में उक्त) के समान कहनी चाहिए। विशेष यह है कि जिसके (वैक्रियसमुद्घात) नहीं होता, उसके विषय में कथन नहीं करना चाहिए। [२] एत्थ वि चउवीसं चउवीसा दंडगा भाणियव्वा। .. [२११७-२] यहाँ भी चौबीस दण्डक चौबीस दण्डकों में कहने चाहिए। २११८. [१] तेयगसमुग्घाओ जहा मारणंतियसमुग्धाओ (सु. २११६)। णवरं जस्स अत्थि।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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