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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२४१ चाहिए। वाणव्यन्तरपर्याय में नारक के असुरकुमारत्व (सु. २१०६ में उक्त) के समान जानना। ज्योतिष्कदेवपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी का होता है, किसी का नहीं होता। जिसका होता, उसका कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होता है। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय में भी कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त (भावी कषायसमुद्घात) होते हैं। २१०८. असुरकुमारस्स णेरइयत्ते अतीता अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि। जस्सऽस्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेजा सिय अणंता। [२१०८] असुरकुमार के नैरयिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं। भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं। २१०९. असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते अतीया अणंता। पुरेक्खडा एगुत्तरिया। ___ [२१०९] असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में अतीत (कषायसमुद्घात) अनन्त हैं और भावी (कषायसमुद्घात) एक से लेकर कहने चाहिए। २११० एवं नागकुमारत्ते निरंतरं जाव वेमाणियत्ते जहा णेरइयस्स भणियं (सु. २१०७) तहेव भाणियव्वं। [२११०] इसी प्रकार नागकुमारत्व से लेकर लगातार वैमानिकत्व तक जैसे (२१०७ सूत्र में) नैरयिक के लिए कहा है, वैसे ही कहना चाहिए। २१११. एवं जाव थणियकुमारस्स वि [ जाव] वेमाणियत्ते। णवरं सव्वेसिं सट्ठाणे एगुत्तरिए परट्ठाणे जहेव असुरकुमारस्स (सु. २१०८-१०)। [२१११] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक भी यावत् वैमानिकत्व में पूर्ववत् कथन समझना चाहिए। विशेष यह है कि इन सबके स्वस्थान में भावी कषायसमुद्घात एक से लगा कर (उत्तरोत्तर अनन्त तक) हैं और परस्थान में (सू. २१०८-१० के अनुसार) असुरकुमार के (भावी कषायसमुद्घात के) समान हैं। २११२. पुढविक्काइयस्स रइयत्ते जाव थणियकुमारत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि सिय संखेजा सिय असंखेजा सिय अणंता। [२११२ ] पृथ्वीकायिक जीव के नारकपर्याय में यावत् स्तनितकुमारपर्याय में अनन्त (कषायसमुद्घात) अतीत हुए हैं, किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते हैं, जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं। २११३. पुढविक्काइयस्स पुढविक्काइयत्ते जाव मणूसत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि एगुत्तरिया। वाणमंतरत्ते जहा णेरइयत्ते (सु. २११२)। जोतिसिय-वेमाणियत्ते अतीया अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि सिय असंखेजा सिय अणंता।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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