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________________ २३४] [प्रज्ञापनासूत्र] आहारकसमुद्घात नहीं होते। इससे भिन्न नारक के जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार भावी आहारकसमुद्घात होते हैं। इससे अधिक भावी आहारकसमुद्घात किये बिना ही सिद्धि प्राप्त कर लेता है। - इसी प्रकार असुरकुमारादि भवनवासियों से लेकर वैमानिकों तक के अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात के विषय में समझ लेना चाहिए। परन्तु मनुष्य के अतीत और अनागत आहारक समुद्घात नारक के अतीत और अनागत जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार हैं, इसी प्रकार मनुष्य के हैं।' . (७) केवलिसमुद्घात - एक-एक नारक के अतीत केवलिसमुद्घात एक भी नहीं है, क्योंकि केवलिसमुद्घात के पश्चात् नियम से अन्तर्मुहूर्त में ही जीव को मोक्ष-प्राप्ति हो जाती है। फिर उसका नरक में जाना और नारक होना सम्भव नहीं है। अतएव किसी भी नारक के अतीत केवलिसमुद्घाात सम्भव नहीं है। अब रहा नारक के भावी केवलिसमुद्घात का प्रश्न-यह किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिस नारक के होता है, उसके एक ही केवलिसमुद्घात होता है। एक से अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि एक केवलिसमुद्घात के द्वारा ही चारों अघातिक कर्मों की स्थिति समान करके केवली अन्तर्मुहूर्त में ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। फिर दूसरी बार किसी को भी केवलिसमुद्घात की आवश्यकता नहीं होती। मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । जो नारक भवभ्रमण करके मुक्तिपद प्राप्त करने का अवसर पायेगा, उस समय उसके अघातिकर्मों की स्थित विषम होगी तो उसे सम करने के लिए वह केवलिसमुद्घात करेगा। यह उसका भावी केवलिसमुद्घात होगा। जो नारक केवलिसमुद्घात के बिना ही मुक्ति प्राप्त करेगा अथवा जो (अभव्य) कभी मुक्ति प्राप्त कर ही नहीं सकेगा, उसकी अपेक्षा से भावी केवलिसमुद्घात नहीं होता। ____ मनुष्य के अतिरिक्त भवनवासी, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव के भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होता। भावी केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, एक ही होता है। युक्ति पूर्ववत् समझना चाहिए। किसी मनुष्य के अतीत केवलिसमुद्घात होता है, किसी के नहीं। केवलिसमुद्घात जिसके होता है, एक ही होता है । जो मनुष्य केवलिसमुद्घात कर चुका है और अभी तक मुक्त नहीं हुआ है-अन्तर्मुहूर्त में मुक्त होने वाला है, उसकी अपेक्षा से अतीत केवलिसमुद्घात है, किन्तु जिस मनुष्य ने केवलिसमुद्घात नहीं किया है, उसकी अपेक्षा से नहीं है। अतीत केवलिसमुद्घात के समान मनुष्य के भावी केवलिसमुद्घात का कथन भी जान लेना चाहिए। अतीत की तरह भावी केवलिसमुद्घात भी किसी का होता है, किसी का नहीं। जिसका होता है, उसका एक ही होता है, अधिक नहीं। चौवीस दण्डकों में बहुत्व की अपेक्षा से अतीत-अनागत-समुद्घात-प्ररूपणा २०९७. [१] णेरइयाणं भंते! केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? १. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा.५, पृ. ९३० से ९३२ तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति. अ. रा. कोष भा. ७, पृ. ४३८ २. (क) वही, अ. रा. कोष भा. ७. पृ. ४३८ (ख) प्रज्ञापना (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ९३३ से ९३५ तक
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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