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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] । [२३३ नारक के अनेक बार वेदनासमुद्घात हुए हैं । यह कथन बाहुल्य की अपेक्षा से समझना चाहिए। बहुत-से जीवों को अव्यवहार-राशि से निकले अनन्तकाल व्यतीत हो चुका है। उनकी अपेक्षा से एक-एक नारक के अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत कहे गए हैं। जिन जीवों को व्यवहारराशि से निकले अल्पसमय व्यतीत हुआ है, उनकी अपेक्षा से यथा सम्भव संख्यात या असंख्यात वेदनासमुद्घात व्यतीत हुए समझने चाहिए। एक-एक नारक के भावी समुद्घात के विषय में कहा गया है कि किसी नारक के भावीसमुद्घात होते हैं, किसी के नहीं होते। तात्पर्य यह है कि जो जीव पृच्छा के समय के पश्चात् वेदनासमुद्घात के बिना ही नरक से निकल कर अनन्तर मनुष्यभव प्राप्त करके वेदनासमुद्घात किये बिना ही सिद्धि प्राप्त करेगा, उसकी अपेक्षा से एक भी वेदनासमुद्घात नहीं है। जो इस पृच्छा के समय के पश्चात् आयु शेष होने के कारण कुछ काल तक नरक में स्थित रह कर फिर मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध होगा, उसके एक, दो या तीन वेदनासमुद्घात सम्भव हैं। संख्यातकाल तक संसार में रहने वाले नारक के संख्यात तथा असंख्यातकाल तक संसार में रहने वाले के असंख्यात और अनन्तकाल तक संसार में रहने वाले के अनन्त भावी समुद्घात होते हैं। नारकों के समान ही असुरकुमारादि भवनवासियों, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, मनुष्यों, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिकों के भी अनन्त वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं तथा भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, वे जघन्य एक, दो या तीन होते हैं, उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं।' [२-३-४-५] वेदनासमुद्घात की तरह कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय एवं तैजस-समुद्घात-विषयक कथन चौबीस दण्उडकों के क्रम से समझ लेना चाहिए। (६) आहारकसमुद्घात - एक-एक नारक के अतीत आहारक-समुद्घात के प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि आहारकसमुद्घात किसी-किसी का होता है, किसी का नहीं होता। जिस नारक के अतीत आहारकसमुद्घात होता है, उसके भी जघन्य एक या दो होते हैं और उत्कृष्ट तीन होते हैं। जिस नारक ने पहले मनुष्यभव प्राप्त कर के अनुकूल सामग्री के अभाव में चौदह पूर्वो का अध्ययन नहीं किया अथवा चौदह पूर्वो का अध्ययन होने पर भी आहारकलब्धि के अभाव में या वैसा कोई विशिष्ट प्रयोजन न होने से आहारकशरीर का निर्माण नहीं किया, उसके अतीत आहारकसमुद्घात नहीं होते। उससे भिन्न प्रकार के नारक के जघन्य एक या दो और उत्कृष्ट तीन आहारकसमुद्घात होते हैं । चार नहीं हो सकते, क्योंकि चार बार आहारकशरीर का निर्माण करने वाला जीव नरक में नहीं जा सकता। __ भावी आहारकसमुद्घात भी किसी के होते हैं, किसी के नहीं। जिनके होते हैं, उनके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट चार होते हैं। नारक मनुष्यभव को प्राप्त करके अनुकूल सामग्री न मिलने से चौदह पूर्वो का अध्ययन नहीं करेगा या अध्ययन करके भी आहारकसमुद्घात नहीं करेगा और सिद्ध हो जाएगा, उसके भावी १. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. ५, पृ. ९२७ से ९२९ तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति. अभिधान रा. कोष भा. ७, पृ. ४३७ २. (क) वही, अ. रा. कोष भा.७, पृ. ४३७ (ख) प्रज्ञापना (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. ९३०
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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