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________________ २२६] [प्रज्ञापनासूत्र] * इसके पश्चात् इन सातों समुद्घातों में से कौन-से समुद्घात की प्रक्रिया क्या है और उसके परिणामस्वरूप उस समुद्घात से सम्बन्धित कर्म की निर्जरा आदि कैसे होती है, इसका संक्षेप में निरूपण है। तदनन्तर वेदनासमुद्घात आदि सातों में से कौन-सा समुद्घात कितने समय का है, इसकी चर्चा है। इनमें केवलिसमुद्घात ८ समय का है, शेष समुद्घात असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त-काल के हैं। इसके पश्चात् यह स्पष्टीकरण किया गया है कि सात समुद्घातों में से किस जीव में कितने समुद्घात पाये जाते हैं? तदनन्तर यह चर्चा विस्तार से की गई है कि एक-एक जीव में, उन-उन दण्डकों के विभिन्न जीवों में अतीतकाल में कितनी संख्या में कौन-कौन से समुद्घात होते हैं तथा भविष्य में कितनी संख्या में सम्भवित * उसके बाद बताया गया है कि एक-एक दण्डक के जीव को तथा उन-उन दण्डकों के जीवों को (स्वस्थान में) उस-उस रूप मे और अन्य दण्डक के जीवरूप (परस्थान) में अतीत-अनागत काल में कितने समुद्घात संभव हैं? इसके पश्चात् समुद्घात की अपेक्षा से जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। तत्पश्चात् कषायसमुद्घात चार प्रकार के बताकर उनकी अपेक्षा से भूत-भविष्यकाल के समुद्घातों की विचारणा की गई है। इसमें भी स्वस्थान-परस्थान की अपेक्षा से अतीत-अनागत कषायसमुद्घातों की एवं अल्पबहुत्व की विचारणा की गई है। इसके पश्चात् वेदना आदि समुद्घातों का अवगाहन और स्पर्श की दृष्टि से विचार किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि उस-उस जीव की अवगाहना (क्षेत्र) तथा (काल) स्पर्शना कितनी कितने काल की होती है तथा किस समुद्घात के समय उस जीव को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? अन्त में केवलिसमुद्घात सम्बन्धी चर्चा विभिन्न पहलुओं से की गई है। सयोगी केवली जब तक मनवचन-काय-योग का निरोध करके अयोगिदशा प्राप्त नहीं करता तब तक सिद्ध नहीं होता। साथ ही सिद्धत्वप्राप्ति की प्रक्रिया का सूक्ष्मता से प्रतिपादन किया गया है। अन्त में सिद्धों के स्वरूप का निरूपण किया गया १. (क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५९० (ख) पण्णवणासुत्तं भा. २, पृ. १५१-१५२ २. पण्णवणासुत्तं भा. १, पृ. ४४६
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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