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________________ छत्तीसइमं समुग्घायपयं छत्तीसवाँ समुद्घातपद समुद्घात-भेद-प्ररूपणा २०८५. वेयण १ कसाय २ मरणे ३ वेउव्विय ४ तेयए य ५ आहारे ६। केवलिए ७ चेव भवे जीव-मणुस्साण सत्तेव ॥ २२७ ॥ [२०८५संग्रहणी गाथार्थ] जीवों और मनुष्यों के ये सात ही समुद्घात होते हैं-(१) वेदना, (२) कषाय, (३) मरण (मारणान्तिक) (४) वैक्रिय, (५) तैजस, (६) आहार (आहारक) और (७) केवलिक। २०८६. कति णं भंते! समुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा! सत्त समुग्घाया पण्णत्ता। तं जहा-वेदणासमुग्घाए १ कसायसमुग्घाए २ मारणंतियसमुग्घाए ३ वेउव्वियसमुग्घाए ४ तेयासमुग्घाए ५ आहारगसमुग्घाए ६ केवलिसमुग्घाए । [२०८६ प्र.] भगवन् ! समुद्घात कितने कहे गए हैं ? [२०८६ उ.] गौतम! समुद्घात सात कहे हैं, यथा – (१) वेदनासमुद्घात, (२) कषायसमुद्घात, (३) मारणान्तिकसमुद्घात, (४) वैक्रियसमुद्घात, (५) तैजससमुद्घात, (६) आहारकसमुद्घात और (७) केवलिसमुद्घात । विवेचन-समुद्घात : स्वरूप और प्रकार-समुद्घात में सम+उद्+घात, ये तीन शब्द हैं। इनका व्याकरणानुसार अर्थ होता है-एकीभावपूर्वक, उत्-प्रबलता से, घात-घात करना । तात्पर्य यह हुआ कि एकाग्रतापूर्वक प्रबलता के साथ घात करना। भावार्थ यह है कि वेदना आदि के साथ उत्कृष्टरूप से एकीभूत हो जाना। फलितार्थ यह हुआ कि वेदना आदि समुद्घात के समय आत्मा वेदनादिज्ञानरूप में परिणत हो जाता है, उसे अन्य कोई भान नहीं रहता। जब जीव वेदनादि समुद्घातों में परिणत हो जाता है, तब कालान्तर में अनुभव करने योग्य वेदनीयादि कर्मो के प्रदेशों को उदीरणाकरण के द्वारा खींचकर, उदयावलिका में डालकर, उनका अनुभव करके निर्जीर्ण कर डालता है, अर्थात-आत्मप्रदेशों से पृथक कर देता है। यही घात की प्रबलता है। पूर्वकृत कर्मों का झड़ जाना, आत्मा से पृथक् हो जाना ही निर्जरा है। समुद्घात सात प्रकार के है-(१) वेदना, (२) कषाय, (३) मारणांतिक, (४) वैक्रिय, (५) तैजस, (६) आहारक और (७) केवली। कौन समुद्घातम किस कर्म के आश्रित है ? - इनमें से वेदनासमुद्घात असातावेदनीय - कर्माश्रित है, कषायसमुद्घात चारित्रमोहनीय - कर्माश्रित है, मारणान्तिकसमुद्घात अन्तर्मुहूर्त शेष आयुष्य-कर्माश्रित है, वैक्रियसमुद्घात वैक्रियशरीरनाम-कर्माश्रित है, तैजससमुद्घात तैजसशरीरनाम - कर्माश्रित है,आहारकसमुदघात आहारकशरीरनाम-कर्माश्रित है और केवलिसमुद्घात साता-असातावेदनीय, शुभ-अशुभनामकर्म और उच्च-नीचगोत्रकर्माश्रित है।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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