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________________ * * छत्तीसइमं समुग्घायपयं छत्तीसवाँ समुद्घातपद . प्राथमिक प्रज्ञापनासूत्र का यह छत्तीसवाँ समुद्घातपद है। इसमें समुद्घात, उसके प्रकार तथा चौबीस दण्डकों में से किसमें कौन-सा समुद्घात होता है, इसकी विचारणा की गई है। समुद्घात जैन शास्त्रों का पारिभाषिक शग्द है। इसका अर्थ शब्दाशास्त्रानुसार होता है-एकीभावपूर्वक प्रबलता से वेदनादि पर घात-चोट करना। इसकी व्याख्या वृत्तिकार ने इस प्रकार की है-वेदना आदि के अनुभवरूप परिणामों के साथ आत्मा का उत्कृष्ट एकीभाव। इसका फलितार्थ यह है कि तदितरपरिणामों से विरत होकर वेदनीयादि उन-उन कर्मो के बहुत-से प्रदेशों को उदीरणा के द्वारा शीघ्र उदय में लाकर, भोग कर उसकी निर्जरा करना-यानी आत्मप्रदेशों से उनको पृथक् करना, झाड़ डालना। वस्तुतः देखा जाए तो समुद्घात का कर्मों के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। आत्मा पर लगे हुए ऐसे कर्म, जो चिरकाल बाद भोगे जाकर क्षीण होने वाले हों, उन्हें उदीरणा करके उदयावलिका में लाकर वेदनादि के साथ एकीभूत होकर निर्जीर्ण कर देना-प्रबलता से उन कर्मों पर चोट करना समुद्घात है। जैनदर्शन आत्मा पर लगे हुए कर्मों को क्षय किये बिना आत्मा का विकास नहीं मानता। आत्मा की शुद्धि एवं विकासशीलता समुद्घात के द्वारा कर्मनिर्जरा करने से शीघ्र हो सकती है। इसलिए समुद्घात एक ऐसा आध्यात्मिक शस्त्र है, जिसके द्वारा साधक जाग्रत रह कर,कर्मफल का समभावपूर्वक वेदन कर सकता है, कर्मों को शीघ्र ही क्षय कर सकता है। इसी कारण समुद्घात सात प्रकार का बताया गया है-(१) वेदनासमुद्घात, (२) कषायसमुद्घात, (३) मारणान्तिकसमुद्घात, (४) वैक्रियसमुद्घात, (५)तैजससमुद्घात, (६) आहारकसमुद्घात और (७) केवलिसमुद्घात। वृत्तिकार ने बताया है कि कौन सा समुद्घात किस कर्म के आश्रित है ? यथा-वेदनासमुद्घात असातावेदनीयकर्माश्रित है, कषायसमुद्घात चारित्रमोहनीय-कर्माश्रित है, मारणन्तिक-समुद्घात आयुष्य-कर्माश्रित है, वैक्रियसमुद्घात वैक्रियशरीरनामकर्माश्रित है, तैजस समुद्घात तैजसशरीरनामकर्माश्रित है, आहारकसमुद्घात आहारकशरीरनामकर्माश्रित है और केवलिसमुद्घात शुभ-अशुभनामकर्म, साता-असातावेदनीय तथा उच्चनीचगोत्र-कर्माश्रित है। १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५५९ २. (क) पण्णवणासुत्तं भा. १, पृ. ४२८ (ख) प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्र ५५९
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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