SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४] [प्रज्ञापनासूत्र] [२०८४] वैमानिक देवों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। ॥ पण्णवणाए भगवतीए पंचतीसइमं वेयणापयं समत्तं ॥ विवेचन-निदा और अनिदा : स्वरूप और अधिकारी-जिसमें पूर्ण रूप से चित्त लगा हो, जिसका भली भांति ध्यान हो, उसे निदावेदना कहते है, जो इससे बिल्कुल भिन्न हो, अर्थात्-जिसकी ओर चित्त बिल्कुल न हो, वह अनिदावेदना कहलाती है। जो संज्ञी जीव मरकर नारक हुए हों, वे संज्ञीभूत नारक और जो असंज्ञी जीव मरकर नारक हुए हों , वे असंज्ञीभूत कहलाते हैं । इनमें से संज्ञीभूत नारक निदावेदना और असंज्ञीभूत नारक अनिदावेदना वेदते हैं । इसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य और वाणव्यन्तर देवों का कथन है। ज्योतिष्क देवों में जो मायिमिथ्यादृष्टि हैं, वे अनिदावेदना वेदते हैं और जो अमायिसम्यग्दृष्टि हैं, वे निदावेदना वेदते हैं। पृथ्वीकायिक से लेकर चतुरिन्द्रियपर्यन्त सभी अनिदावेदना वेदते है, निदावेदना नहीं, क्योंकि असंज्ञी होने से इनके मन नहीं होता, इस कारण ये अनिदावेदना ही वेदते है। असंज्ञी जीवों को जन्मान्तर में किये हुए शुभाशुभ कर्मों का अथवा वैर आदि का स्मरण नहीं होता। तथ्य यह है कि केवल तीव्र अध्यवसाय से किये गए कर्मो का ही स्मरण होता है, किन्तु पहले के असंज्ञीभव में पृथ्वीकायिकादि का अध्यवसाय तीव्र नहीं था, क्योंकि वे द्रव्यमन से रहित थे। इस कारण असंज्ञी नारक पूर्वभवसम्बन्धी विषयों का स्मरण करने में कुशलचित्त नहीं होता, जबकि संज्ञी नारक पूर्वभवसम्बन्धी कर्म या वैरविरोध का स्मरण करते हैं। इस कारण वे निदावेदना वेदते हैं। सभी पृथ्वीकायिक आदि जीव असंज्ञी होने से विवेकहीन अनिदावेदना वेदते हैं। ॥ प्रज्ञापना भगवती का पैंतीसवाँ वेदनापद समाप्त ॥ १. (क) प्रज्ञपना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भाग ५, पृ. ९०३ से ९०५ तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ५५७
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy