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तेवीसइमं कम्मपगडिपयं
तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद
पढमो उद्देसओ : प्रथम उद्देशक प्रथम उद्देशक में प्रतिपाद्य विषयों की संग्रहणीगाथा १६६४. कति पगडी १ कह बंधइ २ कतिहि व ठाणेहि बंधए जीवो ३।
कति वेदेइ य पयडी ४ अणुभावो कतिविहो कस्स ५ ॥ २१७॥ [१६६४ गाथार्थ-] (१) (कर्म-) प्रकृतियाँ कितनी हैं, (२) किस प्रकार बंधती हैं ?, (३) जीव कितने स्थानों से (कर्म) बांधता है ?, (४) कितनी (कर्म-) प्रकृतियों का वेदन करता है?, (५) किस (कर्म) का अनुभाव (अनुभाग) कितने प्रकार का होता है ? ॥ २१७॥
विवेचन-विविध पहलुओं से कर्मबन्धादि परिणाम-निरूपक पांच द्वार- (१) प्रथमद्वारकर्मप्रकृतियों की संख्या का निरूपण करने वाला, (२) द्वितीयद्वार-कर्मबन्धन के प्रकार का निरूपक, (३) तृतीयद्वार-कर्म बांधने के स्थानों का निरूपक, (४) चतुर्थद्वार-वेदन की जानेवाली कर्मप्रकृतियों की गणना
और (५) पंचमद्वार-विविध कर्मों के विभिन्न अनुभावों का निरूपण करने वाला। प्रथम : कति-प्रकृतिद्वार
१६६५. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! अट्ट कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ। तं जहा- णाणावरणिज १ दरिसणावरणिजं २ वेदणिजं ३ मोहणिजं ४ आउयं ५ णामं ६ गोयं ७ अंतराइयं ८।
[१६६५ प्र.] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही हैं ?
[१६६५ उ.] गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही हैं, वे इस प्रकार - १. ज्ञानावरणीय, २. दर्शनावरणीय, ३. वेदनीय, ४. मोहनीय, ५. आयु, ६. नाम, ७. गोत्र और ८. अन्तराय।
१६६६. णेरइयाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा ! एवं चेव। एवं वेमाणियाणं।
[१६६६ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? _ [१६६६ उ.] गौतम ! इसी प्रकार पूर्ववत् आठ कर्मप्रकृतियाँ कही हैं और (नारकों के ही समान) वैमानिक तक (आठ कर्मप्रकृतियाँ समझनी चाहिए)।
१. प्रज्ञापना, प्रमेयबोधिनी टीका, भा. ५, १५७-१५८