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[ उनतीसवाँ उपयोगपद ]
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गोमा ! एगे अचक्खुदंसणाणागारोवओगे पण्णत्ते ।
[१९१८ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [१९१८ उ.] गौतम! उनका एकमात्र अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग कहा गया है। १९१९. एवं जाव वणस्सइकाइयाणं ।
[१९१९] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक (के विषय में जानना चाहिए।)
१९२०. बेइंदियाणं पुच्छा ।
गोयमा! दुविहे उवओगे पण्णत्ते । तं जहा- सागारे अणागारे य ।
[१९२० प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीवों के उपयोग के विषय में पृच्छा है। [१९२० उ.] गौतम! उनका उपयोग दो प्रकार का कहा गया है, यथा - १९२१. बेइंदियाणं भंते! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा - आभिणिबोहियणाणसागारोवओगे १ सुयणाणसागारोवओगे २ मतिअण्णाणसागारोवओगे ३ सुयअण्णाणसागारोवओगे ४ ।
[१९२१ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
साकारोपयोग और अनाकारोपयोग ।
[१९२१ उ.] गौतमं! उनका उपयोग चार प्रकार का कहा गया है । यथा - (१) आभिनिबोधिकज्ञानसाकारोपयोग, (२) श्रुतज्ञान- साकारोपयोग, (३) मति- अज्ञान - साकारोपयोग और (४) श्रुत- अज्ञान - साकारोपयोग । १९२२. बेइंदियाणं भंते! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! एगे अचक्खुदंसणअणागारोवओगे ।
[१९२२ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीवों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१९२२ उ.] गौतम! उनका एक ही अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग है।
१९२३. एवं तेइंदियाण वि ।
[१९२३] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों (के साकारोपयोग और अनाकारोपयोग) का ( कथन करना चाहिए ।) १९२४. चउरिंदियाण वि एवं चेव । णवरं अणागारोवओग दुविहे पण्णत्ते । तं जहाचक्खुदंसणअणागारोवओगे य अचक्खुदंसणअणागारोवओगे य ।
[१९२४] चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। किन्तु उनका अनाकारोपयोग दो प्रकार का कहा है, यथा-चक्षुदर्शन - अनाकारोपयोग और अचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग ।
१९२५. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा णेरइयाणं (सु. १९१२-१४)।