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[१९१२ प्र.] भगवान् नैरयिकों का उपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ? [१९१२ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा • साकारोपयोग और अनाकारोपयोग ।
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१९१३ णेरइयाणं भंते! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विहे पण्णत्ते तं जहा - मतिणाणसागरोवओगे १ सुयणाणसागारोवओगे २ ओहिणाणसागारो वओगे ३ मतिअण्णाणसागारोवओगे ४ सुयअण्णाणसागारोवओगे ५ विभंगणाणसागारोवओगे ६ ।
[१९१३ प्र.] भगवन् नैरयिकों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१९१३ उ.] गौतम वह छह प्रकार का कहा गया हैं यथा (१) मतिज्ञान- साकारोपयोग, (२) श्रुतज्ञानसाकारोपयोग (३) अवधिज्ञान- साकारोपयोग (४) मति - अज्ञान साकारोपयोग (५) श्रुत- अज्ञान - साकारोपयोग (६) विभंगज्ञान - साकारोपयोग |
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[ प्रज्ञापनासूत्र ]
१९१४ रइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! तिविहे पण्णत्ते । तं जहा - चक्खुदंसणअणागारोवओगे १ अचक्खुदंसणअणागारोवओगे २ ओहिदंसणअणागारोवओगे ३ य ।
[१९१४ प्र.] भगवन्! नैरयिकों का अनाकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१९१४ उ.] गौतम! वह तीन प्रकार का कहा गया है यथा (१) चक्षुदर्शन - अनाकारोपयोग, (२) अचक्षुदर्शन- अनाकारोपयोग, (३) अवधिदर्शन- अनाकारोपयोग ।
१९९५ एवं जाव थणियकुमाराणं ।
१९१५ इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक के साकारोपयोग और अनाकारोपयोग का कथन करना चाहिए।
१९१६ पुढविक्काइयाणं पुच्छा ।
गोयमा! दुबिहे उवओगे पण्णत्ते । तं जहा
[१९१६ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों के उपयोग सम्बन्धी प्रश्न हैं ।
[१९१६ उ.] गौतम! उनका उपयोग दो प्रकार का कहा गया है। यथा-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग ।
१९१७ पुढविक्काइयाणं भंते ! सागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा
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. मतिअण्णाणे सुयअण्णाणे ।
[१९१७ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीवों का साकारोपयोग कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१९१७ उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है - यथा - १ मति- अज्ञान और २ श्रुतअज्ञान साकारोपयोग । १९१८ पुढविक्काइयाणं भंते ! अणागारोवओगे कतिविहे पण्णत्ते ?
सागारोवओगे य अणागारोवओगे य ।