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[प्रज्ञापनासूत्र] है कि कौनसा जीव साकारोपयुक्त है या अनाकारोपयुक्त? इसी प्रकार तीसवें पद में प्रश्नोत्तरी है कि जीव साकार पश्यत्तावान् है या अनाकार पश्यत्तावान् है?' तीसवें पद में पूर्वोक्त वक्तव्यता के पश्चात् केवलज्ञानी द्वारा रत्नप्रभा आदि का ज्ञान और दर्शन (अर्थात्साकारोपयोग तथा निराकारपयोग) दोनों समकाल में होते हैं या क्रमशः होते हैं, इस प्रकार के दो प्रश्नों का समाधान किया गया है तथा ज्ञान और दर्शन का क्रमश: होना स्वीकार किया है। जिस समय अनाकारोपयोग (दर्शन) होता है, उस समय साकारोपयोग (ज्ञान) नहीं होता तथा जिस समय साकारोपयोग होता है, उस समय अनाकारोपयोग नहीं होता, इसी सिद्धान्त की पुष्टि की गई है।
१. पण्णवणासतुत्तं भा. १ (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ४०८-९ २. (क) पण्णवणासुत्तं, भा. १ (मू.पा.टि.), पृ. ४१२
(ख) वही, भा. २ (परिशिष्ट), पृ. १३८