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[प्रज्ञापनासूत्र
८४७. अह भंते ! उट्टे जाव एलए जाणइ अयं मे अतिराउले २ ? गोयमा ! जाव णऽण्णस्थ सण्णिणो ।
[८४७ प्र.] भगवन् ! ऊँट, बैल, गधा, घोड़ा, बकरा और भेड़ा (या भेड़) क्या यह जानता है कि यह मेरे स्वामी का घर है ?
[८४७ उ.] गौतम ! संज्ञी को छोड़ कर, यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। ८४८. अह भंते ! उट्टे जाव एलए जाणइ अयं मे भट्टिदारए २? गोयमा ! जाव णऽण्णस्थ सण्णिणो ।
[८४८ प्र.] भगवन् ऊँट से (लेकर) यावत् एलक (भेड़) तक (का जीव) क्या यह जानता है कि यह मेरे स्वामी का पुत्र है ?
[८४८ उ.] गौतम ! सिवाय संज्ञी (पूर्वोक्त विशिष्ट ज्ञानवान्) के (अन्य के लिए) यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है ?
विवेचन - अबोध बालक-बालिका तथा ऊँट आदि अनुपयुक्त-अपरिपक्व दशा की भाषा का निर्णय - प्रस्तुत दस सूत्रों (सू. ८३९ से ८४८ तक) में से पांच सूत्र अबोध कुमार-कुमारिका से सम्बन्धित हैं और पांच सूत्र ऊँट आदि पशुओं से सम्बन्धित हैं।
पंचसूत्री का निष्कर्ष - अवधिज्ञानी, जातिस्मरणज्ञानी या विशिष्टक्षयोपशम वाले नवजात शिशु (बच्चा या बच्ची) के सिवाय अन्य कोई भी अबोध शिशु बोलता हुआ यह नहीं जानता कि मैं यह बोल रहा हूँ: वह आहार करता हुआ भी यह नहीं जानता कि मैं यह आहार कर रहा हूँ: वह यह जानने में भी समर्थ नहीं होता कि ये मेरे माता-पिता हैं : यह मेरे स्वामी का घर है, अथवा यह मेरे स्वामी का पुत्र है।
उष्ट्र आदि से सम्बन्धित पंचसूत्री का निष्कर्ष - उष्ट्रादि के सम्बन्ध में भी शास्त्रकार ने पूर्वोक्त पंचसूत्री जैसी भाषा की पुनरावृत्ति की है, इसलिए इस पंचसूत्री का भी निष्कर्ष यही है कि विशिष्ट ज्ञानवान् या जातिस्मरणज्ञानी (संज्ञी) के सिवाय किसी भी ऊँट आदि को इन या ऐसी अन्य बातों का बोध नहीं होता। वृत्तिकार ने उष्ट्रादि की पंचसूत्री के सम्बन्ध में एक विशेष बात सूचित की है कि प्रस्तुत पंचसूत्री में ऊँट आदि शैशवास्था वाले ही समझना चाहिए, परिपक्व वय वाले नहीं: क्योंकि परिपक्व अवस्था वाले ऊँट आदि को तो इन बातों पर परिज्ञान होना सम्भव है।'
भाषा के सन्दर्भ में ही यह दशसूत्री : एक स्पष्टीकरण - इससे पूर्व सूत्रों में भाषाविषयक निरूपण १. (क) पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भा. १, पृ. २१०-२११
(ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २५२