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________________ ग्यारहवाँ भाषापद] (अधिराज) का घर (कुल) है ? ___ [८४२ उ.] गौतम ! सिवाय संज्ञी (पूर्वोक्त अवधिज्ञानादि संज्ञायुक्त) के यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। ८४३. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ अयं मे भट्टिदारए अयं मे भट्टिदारए त्ति? गोयमा ! णो इणढे समढे, णऽण्णत्थ सण्णिणो । [८४३ प्र.] भगवन् ! क्या मन्द कुमार या मन्द कुमारिका यह जानती है कि यह मेरे भर्ता (स्वामी) का दारक (पुत्र) है। [८४३ उ.] गौतम ! संज्ञी को छोड़कर यह अर्थ समर्थ नहीं है । ८४४. अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलए जाणइ बुयमाणे अहमेसे बुयामि अहमेसे बुयामि ? गोयमा ! णो इणद्वे, णऽण्णत्थ सण्णिणो। . [८४४ प्र.] भगवन् ! इसके प्रश्चात् प्रश्न है कि ऊंट, बैल, गधा, घोड़ा, बकरा और भेड़ (इनमें से प्रत्येक) क्या बोलता हुआ यह जानता है कि मै यह बोल रहा हूँ ? मैं यह बोल रहा हूँ? [८४४ उ.] गौतम ! संज्ञी (विशिष्ट ज्ञानवान् या जातिस्मरणज्ञानी) को छोड़ कर यह अर्थ (अन्य किसी ऊंट आदि के लिए) शक्य नहीं है । ८४५. अह भंते ! उट्टे जाव एलए जाणइ आहारेमाणे अहमेसे आहारेमि अहमेसे आहारेमि त्ति ? गोयमा ! णो इणढे समटे, णऽण्णस्थ सण्णिणो। [८४५ प्र.] भगवन् ! (अब यह बताएँ कि) उष्ट्र से लेकर यावत् एलक (भेड़) तक (इनमें से प्रत्येक) आहार करता हुआ यह जानता है कि मैं यह आहार करता हूँ, मै यह आहार कर रहा हूँ? [८४५ उ.] गौतम ! सिवाय संज्ञी के, यह अर्थ समर्थ नहीं है । ८४६. अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलए जाणइ अयं मे अम्मा-पियरो २ त्ति ? गोयमा ! णो इणढे समठे, णऽण्णस्थ सण्णिणो । [८४६ प्रे.] भगवन् ! ऊँट, बैल, गधा, घोड़ा, अज और एलक (भेड़) क्या यह जानता है कि ये मेरे माता-पिता हैं। [८४६ उ.] गौतम ! सिवाय संज्ञी के यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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