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[प्रज्ञापनासूत्र
जाति के गुणों का निरूपण करना होता है तो निर्मल बुद्धि वाले प्ररूपणकर्ता प्रायः' शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं - 'प्रायः ऐसा समझना चाहिए।' जहाँ 'प्रायः' शब्द का प्रयोग नहीं होता, वहाँ भी उसे प्रसंगवश समझ लेना चाहिए। अतः कदाचित् कहीं किसी व्यक्ति में जाति गुण से विपरीत पाई जाए तो भी बहुलता के कारण कोई दोष न होने से वह भाषा प्रज्ञापनी है, मृषा नहीं। अबोध बालक-बालिका तथा ऊंट आदि की अनुपयुक्त-अपरिपक्व दशा की भाषा
८३९. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ बुयमाणे अहमेसे बुयामि अहमेसे बुयामीति ?
गोयमा ! णो इणढे समटे, णऽण्णत्थ सण्णिणो।
[८३९ प्र.] भगवन् ! अब प्रश्र यह है कि क्या मन्द कुमार (अबोध नवजात शिशु) अथवा मन्द कुमारिका (अबोध बालिका) बोलती हुई ऐसा जानती है कि मैं बोल रही हूँ ?
[८३९ उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है, सिवाय संज्ञी (अवधिज्ञानी, जातिस्मरण विविशष्ट पटु मन वाले) के।
८४०. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ आहारमाहारेमाणे अहमेसे आहारमाहारेमि अहमेसे आहारमाहारेमि त्ति ?
गोयमा ! णो इणढे समढे, णऽण्णत्थ सण्णिणो।
[८४० प्र.] भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका आहार करती हुई जानती है कि मैं इस आहार को करती हूँ?
[८४० उ.] गौतम ! संज्ञी (अवधिज्ञानी आदि पूर्वोक्त) को छोड़ कर यह अर्थ समर्थ नहीं है। ८४१. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ अयं मे अम्मा-पियरो २ ? गोयमा ! णो इणढे समढे, णऽण्णत्थ सण्णिणो । [८४१ प्र.] भगवन् ! क्या मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका यह जानती है कि ये मेरे माता-पिता हैं ? [८४१ उ.] गौतम ! संज्ञी (पूर्वोक्त अवधिज्ञानी आदि) को छोड़कर यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
८४२. अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणइ अयं मे अतिराउले अयं मे अतिराउले त्ति?
गोयमा ! णो इणढे समढे, णऽण्णत्थ सणिणो। [८४२ प्र.] भगवन् ! मन्द कुमार अथवा मन्द कुमारिका क्या यह जानती है कि यह मेरे स्वामी