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[ प्रज्ञापनासूत्र
सत्या आदि चारों भाषाओं की पहिचान आराधनी हो, वह सत्या - जिसके द्वारा मोक्षमार्ग की आराधना की जाए, वह आराधनी भाषा है। किसी भी विषय में शंका उपस्थित होने पर वस्तुतत्त्व की स्थापना की बुद्धि से जो सर्वज्ञमतानुसार बोली जाती है, जैसे कि आत्मा का सद्भाव है, वह स्वरूप से सत् है, पररूप से असत् है, द्रव्यार्थिकनय से नित्य है, पर्यायार्थिकनय से अनित्य है, इत्यादि रूप से यथार्थ वस्तुस्वरूप का कथन करने वाली होने से भी आराधनी है । जो आराधनी हो, उस भाषा को सत्याभाषा समझनी चाहिए। जो विराधनी हो, वह मृषा - जिसके द्वारा मुक्तिमार्ग की विराधना हो, वह विराधनी भाषा है। विपरीत वस्तुस्थापना आशय से सर्वज्ञमत के प्रतिकूल जो बोली जाती है, जैसे कि आत्मा नहीं है, अथवा आत्मा एकान्त नित्य है या एकान्त अनित्य है, इत्यादि । अथवा जो भाषा सच्ची होते हुए भी परपीड़ा- - जनक हो, वह भाषा विराधनी है । इस प्रकार रत्नत्रयरूप मुक्तिमार्ग की विराधना करने वाली हो वह भी विराधनी है। भाषा को मृषा समझना चाहिए। जो आराधनी - विराधनी उभयरूप हो, वह सत्यामृषा जो भाषा आंशिक रुप से आराधनी और आंशिक रूप से विराधनी हो, वह आराधनी - विराधनी कहलाती है। जैसे- किसी ग्राम या नगर में पांच बालकों का जन्म हुआ, किन्तु किसी के पूछने पर कह देना 'इस गाँव या नगर में आज दसेक बालकों का जन्म हुआ है।'' पांच बालकों का जो जन्म हुआ' उतने अंश में यह भाषा संवादिनी होने से आराधनी है, किन्तु पूरे दस बालकों का जन्म न होने से उतने अंश में यह भाषा विसंवादिनी होने से विराधनी है । इस प्रकार स्थूल व्यवहारनय के मत से यह भाषा आराधनी - विराधनी हुई। इस प्रकार की भाषा 'सत्यामृषा' है। जो न आराधनी हो, न विराधनी, वह असत्यामृषा - जिस भाषा में आराधनी के लक्षण भी घटित न होते हों तथा जो विपरीतवस्तुस्वरूप कथन के अभाव का तथा परपीड़ा का कारण न होने से जो भाषा विराधनी भी न हो तथा जो भाषा आंशिक संवादी और आंशिक विसंवादी भी न होने से आराधनी - विराधनी भी न हो, ऐसी भाषा असत्यामृषा समझनी चाहिए। ऐसी भाषा प्रायः आज्ञापनी या आमंत्रणी होती है, जैसे - मुने ! प्रतिक्रमण करो । स्थण्डिल का प्रतिलेखन करो आदि ।
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विविध पहलुओं से प्रज्ञापनी भाषा की प्ररूपणा
८३२. अह भंते ! गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! गाओ मिया पसू पक्खी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।
[८३२ प्र.] भगवन् ! अब यह बताइए कि 'गायें,' 'मृग', 'पशु' (अथवा ) 'पक्षी' क्या यह भाषा (इस प्रकार का कथन) प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा (तो) नहीं है ?
[८३२ उ.] हाँ, गौतम ! 'गायें, 'मृग, 'पशु' (अथवा ) 'पक्षी' यह (इस प्रकार की) भाषा प्रज्ञापनी है। यह भाषा मृषा नहीं है ।
१. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २४७ - २४८