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। प्रज्ञापनासूत्र
गोयमा ! आराहणी सच्चा १ विराहणी मोसा २ आराहणविराहणी सच्चामोसा ३ जा णेव आराहणी णेव विराहणी णेव आराहणविराहणी असच्चामोसा णाम सा चउत्थी भासा ४ से एतेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-ओहारिणी णं भासा सिय सच्चा सिय मोसा सिय सच्चामोसा सिय असच्चामोसा।
[८३१ प्र.] भगवन् ! अवधारिणी भाषा क्या सत्य है, मृषा (असत्य) है, सत्यामृषा (मिश्र) है, अथवा असत्यामृषा (न सत्य, न असत्य) है ?
[८३१ उ.] गौतम ! वह (अवधारिणी भाषा) कदाचित् सत्य होती है, कदाचित् मृषा होती है, कदाचित् सत्यामृषा होती है और कदाचित् असत्यामृषा (भी) होती है।
[प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहते हैं कि (अवधारिणी भाषा) कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्यामृषा और कदाचित् असत्यामृषा (भी) होती है ?
[उ.] गौतम ! (जो) आराधनी (भाषा है, वह) सत्य है, (जो) विराधनी (भाषा है, वह) मृषा है, (जो) आराधनी-विराधनी (उभयरूपा भाषा है, वह) सत्यामृषा है, और जो न तो आराधनी (भाषा) है, न विराधनी है और न ही आराधनी-विराधनी है, वह चौथी असत्यामृषा नाम की भाषा है। हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि अवधारिणी भाषा कदाचित् सत्य, कदाचित् मृषा, कदाचित् सत्यामृषा और कदाचित् असत्यामृषा होती है।
विवेचन - भाषा की अवधारिणिता एवं चतुर्विधता का निर्णय - प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ८३०८३१) में से प्रथम सूत्र में श्री गौतमस्वामी ने स्वमनन-चिन्तनानुसार भाषा की अवधारिणिता का भगवान् से निर्णय कराया है तथा दूसरे सूत्र में अवधारिणी भाषा के चार प्रकारों का भी निर्णय भगवान् द्वारा कराया है।
___ 'भाषा' और 'अवधारिणी' की व्याख्या - भाषा का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ होता है - जो भाषी जाए अर्थात् बोली जाए, वह भाषा है। इसकी शास्त्रीय परिभाषा है - भाषा के योग्य द्रव्यों (पुद्गलों) को ग्रहण करके उसे भाषा के रूप में परिणत करके (मुख आदि से) निकाला जाने वाला द्रव्यसंघात भाषा है। 'भाषा अवधारिणी है' - इसका अर्थ हुआ - भाषा अवबोध कराने वाली है - अवबोध की बीजभूत (कारण) है, क्योंकि अवधारिणी का अर्थ है - जिसके द्वारा पदार्थ का अवधारण - बोध या निश्चय होता है।
प्रथम सूत्र का हार्द - प्रथम सूत्र (८३०) में भी गौतमस्वामी ने भाषा की अवधारिणी के सम्बन्ध में अपने मन्तव्य की सत्यता का भगवान् से निर्णय कराने हेतु एक ही प्रश्न को छह वार विविध पहलुओं से दोहराया है। उसका तात्पर्य इस प्रकार है - (१) भगवन् ! मैं ऐसा मानता हूँ कि भाषा अवबोधकारिणी है, १. 'भाष्यते इति भाषा' २. 'तद्योग्यतया परिणामितनिसज्यमानद्रव्यसंहतिः एष पदार्थः।' ३. अवधारयते-अवगम्यतेऽर्थोऽनयेत्यवधारिणी-अवबोधबीजभूता इत्यर्थः।
-प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २४६