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________________ ४२ ] [प्रज्ञापनासूत्र [८२५-२] इसी प्रकार अविच्छिन्नरूप से वैमानिक देवों तक (प्ररुपणा करनी चाहिए ।) ८२६.[१] णेरइए णं भंते ! रसचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८२६-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक रसचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? [८२६-१ उ.] गौतम ! (एक नैरयिक रसचरम की अपेक्षा से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है। . [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । [८२६-२] निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (प्रतिपादन करना चाहिए ।) ८२७.[१] नेरइया णं भंते ! रसचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८२७-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक रसचरम की अपेक्षा से चरम हैं । अथवा अचरम ? [८२७-१ उ.] गौतम ! (वे रसचरम की दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं । [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । [८२७-२] इसी प्रकार लगातार वैमानिक देवों तक (कहना चाहिए ।) ८२८.[१] णेरइए णं भंते ! फासचरिमेण किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८२८-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक स्पर्शचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ? [८२८-१ उ.] गौतम ! (एक नैरयिक स्पर्शचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । [८२८-२] लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (निरूपण करना चाहिए ।) ८२९.[१] णेरड्या णं भंते ! फासचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८२९-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक स्पर्शचरम की अपेक्षा से चरम हैं अथवा अचरम हैं ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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