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________________ दसवाँ चरमपद] गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिने । [८२२-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ? [८२२-१ उ.] गौतम ! (एक नैरयिक वर्णचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम ट [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । [८२२-२] इसी प्रकार निरन्तर (एक) वैमानिक पर्यन्त (कहना चाहिए ।) ८२३.[१] णेरइया णं भंते ! वण्णचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८२३-१ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम हैं ? [८२३-१ उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक वर्णचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं । [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए । [८२३-२] इसी प्रकार लगातार (अनेक) वैमानिक देवों तक (कथन करना चाहिए।) ८२४.[१]णेरडए णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे।। [८२४-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक गन्धचरम की अपेक्षा से चरम है अथवा अचरम है ? [८२४-१ उ.] गौतम ! (एक नैरयिक गन्धचरम की दृष्टि से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिए। [८२४-२] लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार (प्ररूपणा करनी चाहिए।) ८२५. [१] णेरइया णं भंते ! गंधचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८२५-१ प्र.] भगवन् ! गन्धचरम की अपेक्षा से (अनेक) नैरयिक चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [८२५-१ उ.] गौतम ! (अनेक नैरयिक गन्धचरम की अपेक्षा से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं । [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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