SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दसवाँ चरमपद] [३९ ८१५.[१] णेरइया णं भंते भासाचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८१५-१ प्र.] भगवन् ! भाषाचरम की अपेक्षा से (अनेक) नैरयिक चरम हैं अथवा अचरम हैं ? [८१५-१ उ.] गौतम ! (वे भाषाचरम की दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [२] एवं एगिंदियवज्जा निरंतरं जाव वेमाणिया । [८१५-२] एकेन्द्रिय जीवों को छोड़कर वैमानिक देवों तक लगातार इसी प्रकार (कथन करना चाहिए।) ८१६.[१] णेरइए णं भंते ! आणापाणुचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८१६-१ प्र.] भगवन् ! (एक) नैरयिक आनापान (श्वासोच्छ्वास)-चरम की अपेक्षा से चरम है या अचरम? [८१६-१ उ.] गौतम ! (आनापानचरम की दृष्टि से एक) नैरयिक कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है। [२] एवं णिरंतरं जाव तेमाणिए । [८१६-२] इसी प्रकार लगातार (एक) वैमानिक पर्यन्त (प्ररूपणा करनी चाहिए।) ८१७.[१] णेरड्या णं भंते ! आणापाणुचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा ? गोयमा ! चरिमा वि अचरिमा वि । [८१७-२ प्र.] भगवन् ! (अनेक) नैरयिक आनपानचरम की अपेक्षा से चरम हैं या अचरम? [८१७-२ उ.] गौतम ! (आनपानचरम की दृष्टि से) चरम भी हैं और अचरम भी हैं। [२] एवं निरंतरं जाव वेमाणिया । [८१७-२] इसी प्रकार अविच्छिन्नरूप से (अनेक) वैमानिक देवों तक (प्ररूपणा करनी चाहिए।) ८१८.[१] णेरइए णं भंते ! आहारचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे ? गोयमा ! सिय चरिमे सिय अचरिमे । [८१८-१ प्र.] भगवन् ! आहारचरम की अपेक्षा से (एक) नैरयिक चरम है अथवा अचरम?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy