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१६५४. मिच्छादंसणवत्तियाए पुच्छा ।
गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे ।
[१६५४] (इसी प्रकार की) पृच्छा मिथ्यादर्शनप्रत्यया के सम्बन्ध में करनी चाहिए।
[3.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
[ प्रज्ञापनासूत्र
१६५५. एवं पाणावायविरयस्स मणूसस्स वि ।
[१६५५] इसी प्रकार प्राणातिपातविरत मनुष्य का भी (आलापक कहना चाहिए । )
१६५६. एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य ।
[ १६५६] इसी प्रकार मायामृषाविरत जीव और मनुष्य के सम्बन्ध में भी पूर्ववत् कहना चाहिए।
१६५७. मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जति ?
गोयमा ! मिच्छादंसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कज्जति । एवं जाव अपच्चक्खाणकिरिया । मिच्छादंसणवत्तिया किरिया नो कज्जति ।
[१६५७ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत जीव के क्या आरम्भिकीक्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है ?
[उ.] गौतम ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत जीव के आरम्भिकीक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानक्रिया तक (कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है । किन्तु) मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया नहीं होती।
१६५८. मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते ! णेरइयस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ ?
गोयमा ! आरंभिया वि किरिया कज्जति जाव अपच्चक्खाणकिरिया वि कज्जति, मिच्छादंसणवत्तिया किरिया णो कज्जइ ।
[१६५८ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्यविरत नैरयिक के क्या आरम्भिकीक्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है ?
[उ.] गौतम ! (उसके) आरम्भिकीक्रिया भी होती है, यावत् अप्रत्याख्यानक्रिया भी होती है, (किन्तु) मिथ्यादर्शनप्रत्याक्रिया नहीं होती ।
१६५९. एवं जाव थणियकुमारस्स ।
[१६५९] इसी प्रकार (मिथ्यादर्शनविरत नैरयिक के क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान) असुरकुमार