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________________ ५६६ ] १६५४. मिच्छादंसणवत्तियाए पुच्छा । गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे । [१६५४] (इसी प्रकार की) पृच्छा मिथ्यादर्शनप्रत्यया के सम्बन्ध में करनी चाहिए। [3.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [ प्रज्ञापनासूत्र १६५५. एवं पाणावायविरयस्स मणूसस्स वि । [१६५५] इसी प्रकार प्राणातिपातविरत मनुष्य का भी (आलापक कहना चाहिए । ) १६५६. एवं जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स मणूसस्स य । [ १६५६] इसी प्रकार मायामृषाविरत जीव और मनुष्य के सम्बन्ध में भी पूर्ववत् कहना चाहिए। १६५७. मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते ! जीवस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जति ? गोयमा ! मिच्छादंसणसल्लविरयस्स जीवस्स आरंभिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कज्जति । एवं जाव अपच्चक्खाणकिरिया । मिच्छादंसणवत्तिया किरिया नो कज्जति । [१६५७ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत जीव के क्या आरम्भिकीक्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत जीव के आरम्भिकीक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है। इसी प्रकार अप्रत्याख्यानक्रिया तक (कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं होती है । किन्तु) मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया नहीं होती। १६५८. मिच्छादंसणसल्लविरयस्स णं भंते ! णेरइयस्स किं आरंभिया किरिया कज्जति जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! आरंभिया वि किरिया कज्जति जाव अपच्चक्खाणकिरिया वि कज्जति, मिच्छादंसणवत्तिया किरिया णो कज्जइ । [१६५८ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्यविरत नैरयिक के क्या आरम्भिकीक्रिया होती है, यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है ? [उ.] गौतम ! (उसके) आरम्भिकीक्रिया भी होती है, यावत् अप्रत्याख्यानक्रिया भी होती है, (किन्तु) मिथ्यादर्शनप्रत्याक्रिया नहीं होती । १६५९. एवं जाव थणियकुमारस्स । [१६५९] इसी प्रकार (मिथ्यादर्शनविरत नैरयिक के क्रिया सम्बन्धी आलापक के समान) असुरकुमार
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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