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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [५६३ बन्धक होते हैं। (१) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविबधन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक और अबन्धक होता है। (२) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होता है एवं अनेक अबन्धक होते हैं। (३) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक, अनेक षविधबन्धक और एक अबन्धक होता है। (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक एवं एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है, और अनेक षड्विधबन्धक एवं अबन्धक होते हैं। (५) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक और अबन्धक होता है। (६) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक एवं अनेक अबन्धक होते हैं। (७) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं तथा एक अबन्धक होता है। (८) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक और अबन्धक होते हैं। ये कुल आठ भंग हुए। सब मिलाकर कुल २७ भंग होते हैं। __१६४४. एवं मणूसाण वि एते चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा। ___ [१६४४] इसी प्रकार (उपर्युक्त प्रकार से) (प्राणातिपातविरत) मनुष्यों के भी (कर्मप्रकृतिबन्धसम्बन्धी) यही २७ भंग कहने चाहिए। १६४५. एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स य मणूस्स य। [१६४५] इसी प्रकार (प्राणतिपातविरत एक जीव और एक मनुष्य के समान) मृषावादविरत यावत् मायामृषाविरत एक जीव तथा एक मनुष्य के भी कर्मप्रकृतिबन्ध का कथन करना चाहिए। १६४६. मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपिगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधए वा। [१६४६ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्यविरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? [उ.] गौतम ! (वह) सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक, एकविधबन्धक अथवा अबन्धक होता है। १६४७. [१] मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! णेरइए कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा, जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिए। [१६४७-१ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत (एक) नैरयिक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता हैं ? [उ.] गौतम ! (वह) सप्तविधबन्धक अथवा अष्टविधबन्धक होता है; (यह कथन) पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक तक (समझना चाहिए।)
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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