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________________ ५६२] [ प्रज्ञापनासूत्र छव्विहबंधगा य अबंधए य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगा य ४। ___ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगे य अबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगेय छव्विहबंधगा य अबंधगाय ४ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगेय अबंधगेय ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगा य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगे य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य अबंधगा य ८ एते अट्ठ भंगा। सव्वे वि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति। [१६४३ प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? [उ.] गौतम ! (१) समस्त जीव सप्तविधबन्धक और एकबिधबन्धक होते हैं। (१) अथवा अनेक सप्तविध-बन्धक अनेक एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक होता है। (२) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, अनेक एकविधबन्धक और अनेक अष्टविधबन्धक होते हैं । (३) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है। (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक तथा षड्विधबन्धक होते हैं। (५) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है, (६) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अबन्धक होते हैं। (१) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक अनेक एकविधबन्धक और एक अष्टविधबन्धक और एक षड्विधबन्धक होता है। (२) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक तथा एक अष्टविधबन्धक और अनेक षड्विधबन्धक होते हैं। (३) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, और अष्टविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्ध होता है। (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं। (१) अथवा अनेक सप्तविधबन्धप और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक और एक अबन्धक होता है। (२) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक अष्टविधबन्धक एवं अनेक अबन्धक होते हैं। (३) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और अबन्धक होते हैं । (१) अथवा अनेक सप्तविध-बन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्ध एवं अबन्धक होता है। (२) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक एवं अनेक अबन्धक होते हैं। (३) अनेक सप्तविधबन्ध, एकविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है। (४) अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, षड्विधबन्धक और
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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