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बाईसवाँ क्रियापद ]
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मिथ्यादर्शनविरमण एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में नहीं हो सकता, यद्यपि किन्हीं द्वीन्द्रियादि को करण की अपर्याप्तावस्था में सास्वादनसम्यक्त्व होता है, तथापि मिथ्यात्व अभिमुख द्वीन्द्रियादि को होता है । इसलिए मिथ्यात्वविरमण उनमें सम्भव नहीं है । शेष सर्व जीवों में सम्भव है। इसके अतिरिक्त प्राणातिपातविरमण षट्जीवनिकायों के विषय में, अदत्तादानविरमण ग्रहण - धारण- योग्य द्रव्यों के विषय में, मैथुनविरमण रूपों या रूपसह द्रव्यों के विषय में होता है। शेष पापस्थानों से विरमण सर्वद्रव्यों के विषय में होता है । पापस्थानविरत जीवों के कर्मप्रकृतिबन्ध की प्ररूपणा
१६४२. पाणाइवायविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ?
गोयमा ! सत्तविहबंधगे वा अट्ठविहबंधगे या छव्विहबंधगे वा एगविहबंधगे वा अबंधगे वा । एवं मणूसे विभाणियव्वे ।
[१६४२ प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ?
[उ.] गौतम ! वह सप्तविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा अष्टविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा षट्विधबन्धक, एकविधबन्धक या अबन्धक होता है। इसी प्रकार मनुष्य के ( द्वारा कर्मप्रकृतियों के बन्ध के) विषय में भी कथन करना चाहिए।
१६४३. पाणाइवायविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ ।
अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा अबंध ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगा य ६ ।
अहवा सत्तविहबंधगा या एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगाय छव्विहबंधगा य ४, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधए य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंध
अविबंधगाय अबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अबंधगा य ४, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य
१. पण्णवणासुत्तं ( मूलपाठ - टिप्पण) भा. १, पृ. ३५९