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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [५६१ मिथ्यादर्शनविरमण एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में नहीं हो सकता, यद्यपि किन्हीं द्वीन्द्रियादि को करण की अपर्याप्तावस्था में सास्वादनसम्यक्त्व होता है, तथापि मिथ्यात्व अभिमुख द्वीन्द्रियादि को होता है । इसलिए मिथ्यात्वविरमण उनमें सम्भव नहीं है । शेष सर्व जीवों में सम्भव है। इसके अतिरिक्त प्राणातिपातविरमण षट्जीवनिकायों के विषय में, अदत्तादानविरमण ग्रहण - धारण- योग्य द्रव्यों के विषय में, मैथुनविरमण रूपों या रूपसह द्रव्यों के विषय में होता है। शेष पापस्थानों से विरमण सर्वद्रव्यों के विषय में होता है । पापस्थानविरत जीवों के कर्मप्रकृतिबन्ध की प्ररूपणा १६४२. पाणाइवायविरए णं भंते ! जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधगे वा अट्ठविहबंधगे या छव्विहबंधगे वा एगविहबंधगे वा अबंधगे वा । एवं मणूसे विभाणियव्वे । [१६४२ प्र.] भगवन् ! प्राणातिपात से विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है ? [उ.] गौतम ! वह सप्तविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा अष्टविध (कर्म) बन्धक होता है, अथवा षट्विधबन्धक, एकविधबन्धक या अबन्धक होता है। इसी प्रकार मनुष्य के ( द्वारा कर्मप्रकृतियों के बन्ध के) विषय में भी कथन करना चाहिए। १६४३. पाणाइवायविरया णं भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधंति ? गोमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १ । अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगा य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा अबंध ५ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अबंधगा य ६ । अहवा सत्तविहबंधगा या एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य छव्विहबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगाय छव्विहबंधगा य ४, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधए य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंध अविबंधगाय अबंधगे य ३ अहवा सत्तविहबधगा य एगविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य अबंधगा य ४, अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगे य १ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य छव्विहबंधगे य अबंधगा य २ अहवा सत्तविहबंधगा य एगविहबंधगा य १. पण्णवणासुत्तं ( मूलपाठ - टिप्पण) भा. १, पृ. ३५९
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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