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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [५५७ मिथ्यादर्शनप्रत्यया) के साथ सहभाव-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर समझ लेना चाहिए। १६३३. जस्स मायावत्तिया किरिया कज्जति तस्स उवरिल्लाओ दो वि सिय कजंति सिय णो कजंति, जस्स उवरिल्लाओ दो कज्जति तस्स मायावत्तिया णियमा कज्जति। [१६३३] जिसके मायाप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके आगे की दो क्रियाएँ (अप्रत्याख्यानिकी और मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया) कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती हैं, (किन्तु) जिसके आगे की दो क्रियाएँ (अप्रत्याख्यानिकी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया) होती हैं, उसके मायाप्रत्ययाक्रिया नियम से होती है। १६३४. जस्स अपच्चक्खाणकिरिया कजति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कजति सिय णो कज्जति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कजति। ___ [१६३४] जिसको अप्रत्याख्यानक्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती, (किन्तु) जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके अप्रत्याख्यानक्रिया नियम से होती है। . १६३५. [१] णेरइस्स आइल्लियाओ चत्तारि परोप्परं णियमा कजंति, जस्स एताओ चत्तारि कजंति तस्स मिच्छादसणवत्तिया किरिया भइजति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति तस्स एयाओ चत्तारि णियमा कजंति। [१६३५-१] नारक को प्रारम्भ की चार क्रियाएँ (आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया और अप्रत्याख्यान क्रिया) नियम से होती है। जिसके ये चार क्रियाएं होती हैं, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया भजना (विकल्प) से होती है, (किन्तु) जिसके मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया होती है, उसके ये चारों क्रियाएँ नियम से होती हैं। . [२] एवं जाव थणियकुमारस्स। [१६३५-२] इसी प्रकार (नैरयिकों में क्रियाओं के परस्पर सहभाव के कथन के समान असुरकुमार से) स्तनितकुमार तक (दसों भवनवासी देवों) में क्रियाओं के सहभाव का कथन करना चाहिए। _[३] पुढविक्काइयस्स जाव चउर दियस्स पंच वि परोप्परं णियमा कजंति। - [१६३५-३] पृथ्वीकायिक से लेकर चतुरिन्द्रिय तक (के जीवों के) पांचों ही (क्रियाएँ) परस्पर नियम से होती हैं। [४] पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स आइल्लियाओ तिण्णि वि परोप्परं णियमा कजंति, जस्स एयाओ कजंति तस्स उवरिल्लाओ दो भइजंति, जस्स उवरिल्लाओ दोण्णि कजति तस्स एयाओ तिण्णि वि णियमा कजंति, जस्स अपच्चक्खाणकिरिया तस्स मिच्छादसणवत्तिया सिय कजति सिय णो कजति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजति तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जति। [१
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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