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बाईसवाँ क्रियापद ]
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मिथ्यादर्शनप्रत्यया- मिथ्यादर्शन- विपरीत श्रद्धान जिसका कारण हो, उसे मिथ्यादर्शनप्रत्यया कहते हैं ।
इन क्रियाओं में से किस क्रिया का कौन स्वामी या अधिकारी होता है, यह सू. १६२२ से १६२६ तक में बताया गया है। आरम्भिकीक्रिया प्रमत्तसंयतों में से किसी को उस समय होती है जब वह प्रमाद होने से कायदुष्प्रयोगवश पृथ्वी आदि का उपमर्दन करता है । पारिग्रहिकीक्रिया देशविरत को होती है, क्योंकि वह परिग्रह धारण करके रखता है । अप्रत्याख्यानीक्रिया सब को नहीं, उस व्यक्ति को होती है, जो कुछ प्रत्याख्यान नहीं करता। मिथ्यादर्शनप्रत्ययाक्रिया उस को होती है, जो देव, गुरु, धर्म और शास्त्र के प्रति अश्रद्धा, अभक्ति, अविनय करता है ।
चौबीस दण्डकों में क्रियाओं की प्ररूपणा
१६२७. [ १ ] णेरइयाणं भंते ! कति किरियाओ पण्णत्ताओ ?
गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ । तं जहा- आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तियां ।
[१६२७-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों को कितनी क्रियाएँ कही गई हैं ?
[उ.] गौतम ! (उनके) पांच क्रियाएँ कही गई हैं, वे इस प्रकार - आरम्भिकी- यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया । [२] एवं जाव वेमाणियाणं ।
[१६२७-२] इसी प्रकार (नैरयिकों के समान) वैमानिकों तक (प्रत्येक में पांच क्रियाएँ समझनी चाहिए ।)
विवेचन - समस्त संसारी जीवों में पांच क्रियाओं की प्ररूपणा प्रस्तुत सूत्र (१६२७) में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में आरम्भिकी आदि पांचों क्रियाओं की प्ररूपणा की गई है।
जीवों में क्रियाओं के सहभाव की प्ररूपणा
१६२८. जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जति ? जस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया कज्जति ?
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गोयमा ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स पारिग्गहिया किरिया सिय कज्जति सियोकज्जति, जस्स पुण पारिग्गहिया किरिया कज्जति तस्स आरंभिया किरिया नियमा कज्जति ।
[ १६२८ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के आरम्भिकीक्रिया होती है क्या उसके पारिग्रहिकीक्रिया होती है ? .(तथा) जिसके पारिग्रहिकीक्रिया होती है, क्या उसके आरम्भिकीक्रिया होती है ?
१. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४४७
२.
वही, म. वृत्ति, पत्र ४४७