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________________ ५५४] । प्रज्ञापनासूत्र १६२३. पारिग्गहिया णं भंते ! किरिया कस्स कजति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि संजयासंजयस्स। [१६२३ प्र.] भगवन् ! पारिग्रहिकीक्रिया किसके होती है ? [उ.] गौतम ! किसी संयतासंयत के होती है। १६२४. मायावत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कजति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपमत्तसंजयस्स। [१६२४ प्र.] भगवन् ! मायाप्रत्ययाक्रिया किसके होती है ? [उ.] गौतम ! किसी अप्रमत्तसंयत के होती है। १६२५. अपच्चक्खाणकिरिया णं भंते ! कस्स कजति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि अपच्चक्खाणिस्स। [१६२५ प्र.] भगवन् ! अप्रत्याख्यानक्रिया किसके होती है? [उ.] गौतम ! किसी अप्रत्याख्यानी के होती है । १६२६. मिच्छादसणवत्तिया णं भंते ! किरिया कस्स कजति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि मिच्छादंसणिस्स। [१६२६ प्र.] भगवन् ! मिथ्यादर्शनप्रतययाक्रिया किसके होती है ? [उ.] गौतम ! किसी मिथ्यादर्शनी के होती है। विवेचन - प्रकारान्तर से पंचविध क्रियाएँ और उनके अधिकारी - प्रस्तुत ६ सूत्रों (सू. १६२१ से १६२६) में प्रकारान्तर से ५ प्रकार की क्रियाओं का नामोल्लेख तथा उनके अधिकारी का निरूपण किया गया है। आरम्भिकी आदि पांच क्रियाओं की परिभाषा-सचि पृथ्वी, जल, अग्नि आदि का उपमर्दन करना आरम्भ कहलाता है। आरम्भ से पहले दो क्रम होते है- संरम्भ और समारम्भ का। संरम्भ कहते हैं - संकल्प को, समारम्भ कहते है- परिताप क्रिया को। जिसका प्रयोजना या कारण आरम्भ हो, वह आरम्भिकीक्रिया कहलाती हैं- पारिग्रहिकी- धर्मोपकरण को छोड़ कर वस्तुओं को स्वीकार और उन पर मूर्छा परिग्रह है। परिग्रह से निष्पन्न पारिग्रहिकी। मायाप्रत्यया- माया- कपट-अनार्जव। माया जिसका प्रत्यय- कारण हो, वह मायाप्रत्यया। अप्रत्याख्यान- प्रत्याख्यान कहते हैं - त्याग, नियम या हिंसादि आस्रवों से विरति को। विरति या त्याग के परिणामोंका अभाव- अप्रत्याख्यान है। अप्रत्याख्यानजनित क्रिया- अप्रत्याख्यानक्रिया है।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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