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________________ बाईसवाँ क्रियापद ] [५५३ पाओसियाएय किरियाए अपुढे तं समयं पारियावणियाए किरियाए अपुढे पाणाइवायकिरियाए अपुढे ४। __[१६२०] भगवन् ! जिस समय जीव कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, क्या उस समय पारितापनिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है अथवा प्राणातिपातिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है। [उ.] गौतम ! (१) कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकारणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकीक्रिया से स्पृष्ट होता है और प्राणातिपातक्रिया से (भी) स्पृष्ट होता है, (२) कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट नहीं होता, उस समय पारितापनिकीक्रिया से स्पृष्ट होता है, किन्तु प्राणातिपातक्रिया से स्पृष्ट नहीं होता, (३) कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से स्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकीक्रिया से अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपातक्रिया से (भी) अस्पृष्ट होता है तथा (४) कोई जीव, एक जीव की अपेक्षा से जिस समय कायिकी, आधिकरणिकी और प्राद्वेषिकी क्रिया से अस्पृष्ट होता है, उस समय पारितापनिकीक्रिया से भी अस्पृष्ट होता है और प्राणातिपातक्रिया से भी अस्पृष्ट होता है। विवेचन - क्रियाओं से स्पृष्ट-अस्पृष्ट की चतुर्भंगी - प्रस्तुत में पांच क्रियाओं में से एक जीव में एक ही समय कितनी क्रियाएँ स्पृष्ट और कितनी क्रियाएँ अस्पृष्ट होती हैं, इसका विचार किया गया है। प्रकारान्तर से क्रियाओं के भेद और उनके स्वपामित्व की प्ररूपणा १६२१. कइ णं भंते ! किरियाओ पण्णत्तओ? गोयमा ! पंच किरियाओ पण्णत्ताओ । तं जहा- आरंभिया १ पारिग्गहिया २ मायावत्तिया ३ अपच्चंक्खाणकिरिया ४ मिच्छादसणवत्तिया ५। [१६२१ प्र.] भगवन् ! क्रियाएँ कितनी कही गई हैं ? [उ.] गौतम ! क्रियाएँ पांच कही गई हैं, वे इस प्रकार - (१) आरम्भिकी, (२) पारिग्रहिकी, (३) मायाप्रत्यया, (४) अप्रत्याख्यानक्रिया और (५) मिथ्यादर्शनप्रत्यया। १६२२. आरंभिया णं भंते ! किरिया कस्स कजति ? गोयमा ! अण्णयरस्सावि पमत्तसंजयस्स। [१६२२ प्र.] भगवन् ! आरम्भिकीक्रिया किसके होती है ? [उ.] गौतम ! किसी प्रमत्तसंयत के होती हैं। १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४४६
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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